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शब ही नहीं सहर भी तू है।

22 22 22 22
शब ही नहीं सहर भी तू है।
मेरी ग़ज़ल बहर भी तू है।।

मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।

बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।

जीवन के हर पथ में मेरे।
मंजिल और सफ़र भी तू है।।

शाहिल तक पहुचाने वाली।
मेरी वही लहर भी तू है।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 11:37pm

बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।

सुंदर गज़ल का मेरा मोती 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 7:43pm

 आ. राम शिरोमणि पाठक जी,बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।......सुन्दर विचार ,बधाई आपको  !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 7:05pm

आदरणीय राम शिरोमणि भाई सुन्दर रचना .... शाहिल को साहिल कर ले आदरणीय भाई जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 6:55pm

//आगे से लिख दिया करूँगा//

आगे से क्यों ? अभी क्यों नहीं ? आप कोई नये सदस्य तो है नहीं, आप यही टिप्पणी में वजन बता दीजिये, मैं अपडेट कर दूंगा .

Comment by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 6:53pm
गणेश जी बहुत आभार आपका।।सादर
आगे से लिख दिया करूँगा।।
Comment by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 6:52pm
शिज्जु भाई आपसे सहमत भी हूँ और मुझे सही शब्द भी पता है।।
मैंने कहीं ग़ज़ल में ऐसा पढ़ा था इसीलिए लिख दिया।।सुझाव के लिए बहुत आभार आपका।।सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 6:31pm

राम भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है, आप ग़ज़ल के साथ वजन भी लिख देते तो बहर समझने में भी पाठकों को आसानी होगी . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 5:33pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी ग़ज़ल तो अच्छी है बहर के स्थान पर कोई और हर्फे-कवाफी लें तो अच्छा है क्योंकि सही शब्द बह्र है

कृपया ध्यान दे...

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