For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसी खामोश बैठी शायरी से : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

1222-1222-122

------------------------------------

अदावत क्या करे कोई किसी से
परेशां हर कोई जब ज़िन्दगी से

अकीदत आपकी सूरज से लेकिन
हमारी   बेरुखी  है  रौशनी  से

पसीना लफ्ज़ बनकर बह रहा है
किसी  खामोश  बैठी शायरी से

अता जिसको कभी शोहरत नहीं है
कहाँ  मिलते  है ऐसे  आदमी से

सदा सूरज के आगे क्यों सिमटती
किसी  ने  प्रश्न  पूछा चांदनी से

हुकूमत जुल्म किस पर कर रही है
सभी  खामोश  अपनी  बेबसी  से

नहीं  है  कौन  तेरा  तिश्नकामी
बचा  है  कौन  तेरी  तिश्नगी से

जरा मिथिलेश अब दिल से निकालो
मिटाया  नाम  जिसका डायरी  से

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) -   © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

 

 

Views: 1655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 24, 2014 at 6:35pm


सदा सूरज के आगे क्यों सिमटती
किसी  ने  प्रश्न  पूछा चांदनी से

वाह सर अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:48pm
आदरणीय खुर्शीद जी आपकी सराहना और प्रशंसा पर आनंदित हूँ आपका आभार हार्दिक धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:46pm
आदरणीय श्याम वर्मा जी आपकी टिप्पणी पाकर ह्रदय आनंदित हो गया। बहुत बहुत आभार। हार्दिक धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:41pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर इस सराहना और स्नेह के लिए आभार। आपकी टिप्पणी सदैव रचनाकर्म के लिए प्रेरित करती है आपका बहुत बहुत धन्यवाद हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:37pm
आदरणीय बागी सर आपकी सराहना और इतनी स्नेह पूर्ण सकारात्मक टिप्पणी पाकर अभिभूत हूँ आपका ह्रदय से आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:33pm
आदरणीय सोमेश भाई आपका उत्साह वर्धन सदैव मुझे प्रेरित करता है। हार्दिक धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:31pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपके आशीर्वाद से सदैव इस रचनाकार का मनोबल बढ़ता है। आपका हार्दिक आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:29pm
आदरणीय योगेन्द्र सिंह जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 5:28pm
आदरणीय गिरिराज सर आपका अनुमोदन पाकर प्रफुल्लित हूँ हार्दिक आभार।
Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 2:59pm

अकीदत आपकी सूरज से लेकिन

हमारी   बेरुखी  है  रौशनी  से

आदरणीय मिथिलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service