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बड़ा ख़राब जमाना आ गया है , अब घर में विधर्मी नौकर रख लिया है , कौन खायेगा , पियेगा उसके घर । राधा ऊँचे स्वर में अपने पड़ोसन को बता रही थी ।
" अरे हमसे कहा होता , हमने दिला दिया होता नौकर , कोई कमी है इनकी " । पड़ोसन ने भी हाँ में हाँ मिलायी ।
शाम को बेटी से बात करते हुई राधा ने पूछा " अरे कोई काम वाली मिली की नहीं " ।
" हाँ माँ , मिल गयी है , बहुत सफाई से काम करती है फातिमा " ।
" देखना बेटा , संभाल के रखना , आज कल टिकते नहीं ये लोग , समझी "

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 4, 2014 at 5:52pm

आभार सुभ्रांशुजी , ये तो हक़ीक़त है  ..

Comment by विनय कुमार on August 4, 2014 at 5:51pm

आभार सविता मिश्रजी..

Comment by Shubhranshu Pandey on August 4, 2014 at 4:15pm

आदरणीय विनय जी,

दूसरों के घरों में झाँकते समय हमारी आँखो पर खुर्दबीन आ जाता है और अपने घर में देखने पर  नजरबट्टू टूट जाता है. 

सादर.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:25pm

झकझोरती  कथा 

सादर बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 12:52pm

विनय जी आपका  और   आपके पात्रो का नजरिया अच्छ लगा i

Comment by savitamishra on August 4, 2014 at 11:55am

दोहरा चरित्र यत्र तत्र बिखरे है ....बढ़िया लघुकथा

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