For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

.जिंदगी तुझे ही पढ़ लेते हैं ---डा० विजय शंकर

चलो किताबों को बंद कर देते हैं
जिंदगी तुझे ही सीधे-सीधे पढ़ लेते हैं .
किताबों में सबकुझ तेरे बारे में ही तो है
लो , तुझसे ही सीधे-सीधे बात कर लेते हैं.
किताबें तो बहुत सी हैं , मिल भी जायेंगीं
उन को पढ़ लूँ तो क्या तू मिल जायेगी .
मौत को कितने और कौन-कौन पढ़ते हैं
पर उसका वादा है , सबको मिलती है .
भरोसा नहीं , तू किसको मिले , कितनी मिले
तेरे लिये , तेरे चाहने वाले दिन रात लगे रहते हैं .
अरे सब कुछ तो तेरे लिए ही है जिंदगी में
तू है तो सब है , तू नहीं तो क्या है जिंदगी में .
इसलिए चलो किताबों को बंद कर देते हैं .
तू है , तुझसे सीधे-सीधे बात कर लेते हैं .
..डा० विजय शंकर---------------
( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 9:09am
Beautiful . You are really an established poet . My regards to you Zid Saheb .
Comment by Zid on June 14, 2014 at 7:56am

One of my first introduction to gazhals was through Lagta nahi hai dil mera...Years on the kafiya & raddif had been on my mind. Its a pleasure sharing my gazhal structured on the same. Whereas the Rafi has sung the same in Raag Yaman Kalyan set to Dadra (Actual music does not play the rhythm) , I composed the saem in raag Maarwa-set to addha Tal 

कैसे  हुवे  है  शर्मसार  आज  वो   इकरार  में

जैसे  न  हो  कोई  भी  तर्क  इसमें  और  इंकार  में

कौनसी  खबर  लए  हो  बशीर   बयाबान  से 

अब  क्या  हसी  भरोगे  तुम  अजीब -ओ -बेक़रार  में

रहने  दो    सब्र  थोड़ी दुरुस्त -ओ -बुनियाद  है

बंदः  किये  है  सजदा  ताजिस्ट   तेरे  इंतज़ार  में 

ले  आये  बरिह्या  यहाँ  जज़्ब -ओ -रक्स  तुम  

अब  कौन  नज़र -शनास  मिले  ऐसे  पा -ओ -झंकार   में

जस्बा -ओ -जफ़ा  अलट  पलट  दिखाए  हर  अदा   से

बाकि  नहीं  कुछ  भी  जमाल -ओ - शक्ल -ओ - सरसार  में

आएंगे  उठके  हम  न  कभी  तमाशा -ऐ -दोज़ाक   से

अब  क्या  करे  बग़ावत  फकत  एक   दो  चार  में  

ये  कौनसा  ईमान  है  जो  पढ़  रहे  हो  ज़िद

ढूंढे  है  फितरत -ओ -जहा   बेकस  गुलोकार  में

Comment by Zid on June 14, 2014 at 7:21am

Each one of us has a problem communicating with world. As we make ourselves more & more dependedent on technology the humna chord is becoming torn, twisted; almost jarring. I wish to represent all those who share my anxiety & dis-position.

ऐसी   सिमटी  कायनात   न  जाने  बहरे  किधर  को  गई

मुह  ताकते  रह  गए  शब -ऐ -नम  किधर  को   गई

रहने  दो  यह  सूरते -मस्नूई  खाक  जी  सकेंगे 

तमाम  बातें  है  ख़म  अख्लाख़  किधर  को  गई 

इस  शेहेर  में  शै  है  कबीले -इल्तिफ़ात  बहोत

लोग  बेहेले  रास्तोंपर  पुख्ता  महफ़िल  किधर  को  गई

खुद -ज़ुल्मी  हमसे  न  होगी  के  दुकानोमें  बीके

न  जाने  फिक्रो -फन -ओ -कास्त्रे -शान  किधर  को गई

क्या  कशिश  थी  के  कुछ  हुवे  फ़ना  आज -खुद  रफ्ता

लो  बुज़नेसे  पहले  आखिर -ऐ -शब  किधर  को  गई

पूछते  क्या  हो  अदीब  की  ज़ुबा  होती  ही   है  कर्मफरमा

वह -नह -आह -होगी  मगर  वो  निगाही  किधर  को  गई

ऐ  शमा  तू  रोशन -सितारा  रहना  दास्ताँ -ऐ -मार्ग 

कौन  पढ़े  तारीकी में  मंज़िल  किधर  को  गई

ताजिस्ट  क़र्ज़  किये    ज़मनेने   कुछ  इनाम  तो  देते

पर तेरी  भी  ज़िद  गुमगश्ता  न  जाने  किधर  को  गई

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 13, 2014 at 12:08am
पंक्तियाँ आपको पसंद , धन्यवाद आ ०मीना पाठक जी.
Comment by Meena Pathak on June 12, 2014 at 9:57pm

क्या बात है .. बहुत सुन्दर .. बधाई आप को

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:08pm
आपकी प्रेरक अभिव्यक्ति एवं बधाई लिए धन्यवाद , आ ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:07pm
ह्रदय से आभार , प्रिय गिरिराज जी ,
Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:52pm

सुंदर रचना , आ0 विजय शंकर जी बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:09pm

लाजवाब चिंतन के लिये आपको दिली बधाइयाँ , आदरणीय विजय भाई ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 10:36pm
Thanks for encouragement and appreciation, Jitendura Geet ji.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service