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कैसी शुष्कता है?

जो धूप में

बदन झुलसा रही..

भीतर इतनी आग

विरह की जो

केवल धुआँ

और धुआँ देती है

राख तक नसीब नहीं

जिसे रख दूँ संजो कर

तेरी हथेली पर

जब मिलन की बेला हो

और कहूँ कि....

यह पाया मैंने

तुझ बिन...!

     जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व् अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:05pm

रचना में आपको भाव रुचिकर लगे, रचना धन्य हुई आदरणीय राम भाई. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:03pm

आपका ह्रदय से आभार आदरणीय विजय जी, अपना स्नेह व् आशीर्वाद हमेशा बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:01pm

 आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शरदिंदु जी, आपकी रचना पर प्रतिक्रिया से बहुत ख़ुशी व् लेखन को मनोबल मिला. स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 11:40am

आदरणीय बृजेश जी, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक सराहना से बहुत संबल मिलता है, अपना स्नेहिल मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 11:37am

रचना की सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय श्यामनारायण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 11:34am

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया सरिता जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 11:29am

आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना धन्य हो गई आदरणीय प्रदीप जी, आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 11:21am

आपने रचना के भावों को छुआ, मेरा लेखन सार्थक हुआ आदरणीय अरुण श्री जी. अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 11:05am

भाव अच्छे लगे  आदरणीय   ..........  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 10:16am

रचना पर आपकी उपस्थिति से मन को बहुत ख़ुशी मिलती है आदरणीय चंद्रशेखर जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

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