For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरुण से ले प्रकाश तू / गीत (विवेक मिश्र)

अरुण से ले प्रकाश तू
तिमिर की ओर मोड़ दे !

मना न शोक भूत का
है सामने यथार्थ जब
जगत ये कर्म पूजता
धनुष उठा ले पार्थ ! अब
सदैव लक्ष्य ध्यान रख
मगर समय का भान रख
तू साध मीन-दृग सदा
बचे जगत को छोड़ दे !

विजय मिले या हार हो
सदा हो मन में भाव सम
जला दे ज्ञान-दीप यूँ
मनस को छू सके न तम
भले ही सुख को साथ रख
दुखों के दिन भी याद रख
हृदय में स्वाभिमान हो
अहं को पर, झिंझोड़ दे !

अथाह दुख समुद्र में 
कभी कहीं जो तू घिरे
न सोच, पाल तान दे
कि दिन बुरा अभी फिरे
तू बीच सिन्धु ज्वार रख
न संशयों के द्वार रख
उदासियों की सीपियाँ
पड़ी हुईं जो, फोड़ दे !



(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 899

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 5:28pm

सराहना के लिए आभारी हूँ आदरणीया अंजू मिश्रा जी.

Comment by ANJU MISHRA on March 23, 2014 at 5:20pm

कर्मशीलता का भाव प्रस्तुत करता हुआ बहुत सुंदर गीत .....

Comment by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 5:19pm

आदरणीय एडमिन महोदय,

उपरोक्त गीत में कृपया निम्नलिखित संशोधन कर दें -
(१) 'दुःखों' के स्थान पर 'दुखों' कर दें.

(२) 'समुद्र से' के स्थान पर 'समुद्र में' कर दें.

(३) 'कि दिन हरेक के फिरे' के स्थान पर 'कि दिन बुरा अभी फिरे' कर दें.

साभार

विवेक मिश्र 

Comment by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 5:18pm

आदरणीय सौरभ सर -
ओबीओ मंच की किसी भी रचना पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन का कार्य तो करती ही है, साथ ही हर बार कुछ नयी बातें भी सिखा जाती है. मुझ जैसे एक नव-रचनाकार को भला और क्या चाहिये..? 

/"दुःख" की कुल मात्रा ३ होती है/ -

निश्चित रूप से यह मेरे लिए नयी जानकारी है (ग़ज़ल आदि में 'दुःख' को २ ही गिनता आया हूँ, शायद इसलिये..). और अभी-अभी उच्चारण करते समय ऐसा मालूम हुआ कि 'दुःख', असल में 'दुह्+ख' है, इसलिए इसकी मात्रा ३ ही होगी. (वाह्ह्ह सर.. एक नयी चीज़ मालूम हुई).

/समुद्र के असीम इकाई होने से इस द्वारा घिर जा ना उचित नहीं. इसे "समुद्र में" किया जाना उचित होगा/

- इस 'में' और 'से' के बारे में मैंने भी काफी सोचा पर आखिर में कन्फ्युजिया ही गया. आगे से ध्यान रखने का प्रयास रहेगा.

/फिरे  की जगह पर फिरें होना चाहिये. अन्यथा कि दिन बुरा अभी फिरे आदि किया जा सकता है/

- आपका सुझाव उपयुक्त जान पड़ता है. सर आँखों पर.

सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 3:37pm

लाम-ग़ाफ़ की आवृति में सुन्दरता से सधा यह गीत अपने शिल्प के कारण एक पाठक को पुलकित तो करता ही है, संवेदनशील शब्दों के माध्यम से सापेक्ष हुए भाव-संप्रेषण के कारण ऊर्जस्वी भी करता है. सकारात्मक भाव का संचार करते इस गीत के लिए हार्दिक बधाई, विवेक भाईजी. गीत के बंद हताशा से घिरे, तन्द्रा में पड़े, तमस भाव से आच्छादित मनस को सचेत कर उसे विन्दुवत कर देने का माद्दा रखते हैं. यही तो ऐसी रचनाओं का हेतु है.

बहुत-बहुत बधाई इस प्रखर गीत के लिए, भाईजी.

 

दुःख की कुल मात्रा ३ होती है. इसे द्विमात्रिक रूप में लाने के लिए दुख लिखा जाता है. दुःख का यह रूप यानि दुख इसके हिज्जे को गलत नहीं बनाता.

अथाह दुःख समुद्र से

कभी कहीं जो तू घिरे... . . समुद्र के असीम इकाई होने से इस द्वारा घिर जा ना उचित नहीं. इसे समुद्र में किया जाना उचित होगा जोकि कार्मिक जीवन का परिचायक हो कर सामने आता है.


न सोच, पाल तान दे
कि दिन हरेक के फिरे.....  .. यहाँ दिन को हरेक के  साथ प्रस्तुत कर बहुवचन की तरह प्रयुक्त किया गया है. इस हिसाब से फिरे  की जगह पर फिरें होना चाहिये. अन्यथा कि दिन बुरा अभी फिरे आदि किया जा सकता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 3:08pm

भाई वीनस जी! लगभग तीन महीने के प्रयास के बाद मेरे जीवनकाल का यह प्रथम गीत (या गीत जैसा ही कुछ) हुआ है और उस पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी से मन भाव-विभोर है. उत्साहवर्धन हेतु आभार मित्र.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2014 at 2:34pm

आपके गीत ने एक नई उर्जा का संचार किया हैमुझे ऐसे गीत की साख्त ज़रूरत थी

शुक्रिया दोस्त

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
12 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service