For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -जब चने की झाड़ पर हम भी चढ़े थे

२१२१       २१२२       २१२२   

हम भी अखबारों में जब इक दिन छपे थे

दोसतों की शक्ल पर बारह बजे थे

 

अब सुनो मंजिल तुम्हें हम क्या बताएं

इक तुम्हारे वास्ते क्या-क्या सहे थे

 

घर भी छूटा द्वार भी औ जाने क्या-क्या

पर उमीदों  के सहारे भी घने थे

 

दिन गुजारे गम को खाकर आंसू पीकर

इस तरह किरदार अपना हम गढ़े थे

 

याद है हमको अभी तक सब खिलाफ़त

किस कदर अपने सभी दुश्मन बने थे

 

और वो इक वाकया था खूब यारो

जब चने के  झाड़ पर हम भी चढ़े थे

 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanju shabdita on March 27, 2014 at 7:40pm

आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा मैं २१२२  २१२२  २१२२ ही लिखना चाह रही थी पर शायद जल्दी में ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले ध्यान नहीं दे सकी .आशा है कि आप मुझे  इस चूक के लिए माफ़ करेंगे .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 8:01pm

और बातें तो हो गयीं. बह्र के रुक्न को सही लिा है क्या आपने ?

संंभवतः २१२२ २१२२ २१२२ लिखना चाहा होगा आपने.

Comment by sanju shabdita on March 24, 2014 at 11:57am

आदरणीय वीनस जी मजाहिया का तो सवाल ही नहीं ,रही बात संजीदा की तो मैं आपके सुझाव पर ध्यान दूंगी ..कोशिस करुँगी कि प्रस्तुत ग़ज़ल को  बेहतर बना सकूँ ..आपके महत्वपूर्ण सुझाव हेतु आपका हार्दिक आभार .

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:27am

ग़ज़ल न मजाहिया हो पाई न संजीदा रह सकी ...

फिर से काम करें तो शायद कुछ बेहतर अशआर हो जाएँ

Comment by sanju shabdita on March 14, 2014 at 4:19pm

आ० जीतेन्द्र जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2014 at 10:48am

बहुत लाजवाब गजल कही आपने आदरणीया संजू जी

घर भी छूटा द्वार भी औ जाने क्या-क्या

पर उमीदों  के सहारे भी घने थे

 

दिन गुजारे गम को खाकर आंसू पीकर

इस तरह किरदार अपना हम गढ़े थे

यह शेर बहुत खास हुए , ढेरों बधाइयाँ आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service