For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है|

इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक दुसरे के कमेन्ट से प्रभावित न हो सकें इसलिए ब्लॉग के कमेन्ट बॉक्स को मंगलवार रात ०८ बजे तक माडरेशन में रख जायेगा। आपको इस अवधि के पहले पहले बह्र पहचाननी है फिर मंगलवार को रात 08 बजे कमेन्ट बॉक्स को खोल दिया जायेगा और गीत अथवा गज़ल की बह्र, बह्र का नाम और रुक्न प्रकाशित किया जायेगा और फिर शनिवार रात तक के लिए मंच चर्चा के लिए खुला रहेगा आशा करते हैं की इस स्तंभ से लोगों को बह्र को सीखने समझने में पर्याप्त सहायता मिलेगी। आप सबसे सहयोग की अपेक्षा है|

प्रस्तुत है इस सप्ताह की ग़ज़ल

 

बशीर बद्र साहब की मशहूर ग़ज़ल 

 

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं

सोचा तुझे, देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं

 

 

 

 

 

 

यदि आपको अपनी टिप्पणियाँ न दिखें तो परेशान न हों | टिप्पणियों को मोडरेशन  में रखा गया है, जो मंगलवार रात ०८ बजे खोला जाएगा 

- राणा प्रताप सिंह

- वीनस केशरी


Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on February 8, 2011 at 9:15pm
ई मेल से प्राप्त कमेन्ट -

Prakash "Arsh"
Sent Feb 6

वीनस ये बह'र तो तुम्हारी सबसे प्रिय है ! बह'रे रजज की स्थाई शक्ल है मुस्तफएलुन (2212) !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 8, 2011 at 2:26pm

सोचा नहीं /अच्छा बुरा /देखा सुना /कुछ भी नहीं

२२१२       /२२१२          /२२१२       /२२१२
मांगा ख़ुदा/ से रात दिन/ तेरे सिवा/ कुछ भी नहीं

२२१२        /२२१२            /२२१२        / २२१२


बहरे रजज मुसम्मन सालिम ( मुफरद बहर )

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2011 at 11:57pm

बहर है

सोचा नहीं / अच्छा बुरा / देखा सुना / कुछ भी नहीं
मांगा ख़ुदा / से रात दिन /  तेरे सिवा / कुछ भी नहीं

२२१२ २२१२ २२१२ २२१२

बहरे रजज मुसम्मन सालिम

Comment by NEERAJ GOSWAMY on February 7, 2011 at 10:20am
2212 2212 2212 2212
Comment by गौतम राजरिशी on February 7, 2011 at 10:14am

ये श्रृंखला तीसरी कब आ गयी? दूसरे पे तो नजर गयी ही नहीं...

 

खैर, ये रज़ज की मुसमन सालिम बहर है। मेरे पसंदीदा। दो बहुत प्यारी धुन जो याद आ रही है इस वक्त इसी बहर वाली वो है:-

१. कल चौदवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा

२. माना हो तुम बेहद हसीं ऐसे बुरे हम भी नहीं

 

...कुछ और याद आते ही लौट कर आता हूं।

Comment by SURINDER RATTI on February 6, 2011 at 10:58pm
वीनस केशरी जी,
नमस्कार, यह ब'हर है बहरे - रज़ज मुसम्मन सालिम २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
सुरिन्दर रत्ती
मुंबई
Comment by Rajeev Bharol on February 6, 2011 at 10:26pm

बह्र: रजज मुसम्मन सालिम

2212 2212 2212 2212

मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन्

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service