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कुछ कह-मुकरियाँ ..............डॉ० प्राची

क़दमों में दे बहकी थिरकन

महकी नम सी चंचल सिहरन  

बाँहों भर ले, रच कर साजिश 

क्या सखि साजन? न सखि बारिश 

हर पल उसने साथ निभाया 

संग चले बन कर हम साया 

रंग रसिक नें उमर लजाई 

क्या सखि साजन? न सखि डाई

चाहे मीठे चाहे खारे 

राज़ पता हैं उसको सारे 

खोल न डाले राज़, हाय री ! 

क्या सखि साजन? न सखि डायरी 

उसने सारे बंध सँजोए

अंक समेटे प्रेम पिरोए 

ज़िंदा है यादों से हरदम 

क्या सखि साजन? न सखि एल्बम 

आँसू देखे, झट गल जाए 

रख लूँ उसको नयन बसाए 

रूप निखारे कंचन कंचन 

क्या सखि साजन? न सखि अंजन 

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2014 at 9:44pm

//समूह में बच्चों के साथ खेलने के लिए अच्छी  पहेली है ॥//

आपकी टिप्प्णी की इस पंक्ति ने मुझे बहुत ही हैरान और निराश किया है आ० अखिलेश श्रीवास्तव जी.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 22, 2014 at 9:23pm

आदरणीया प्राचीजी, 

सभी मुकरियाँ लाजवाब हैं , मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें । उम्मीद है आगे और भी  पढ़ने मिले , समूह में बच्चों के साथ खेलने के लिए अच्छी  पहेली है ॥ अंतिम के लिए विशेष बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:41pm

प्रिय प्राची बहुत सुन्दर कहमुकरियाँ रची हैं छ दिन बाद नेट स्टार्ट हुआ अतः रचना पर देर से आना हुआ ,बहुत बहुत बधाई इस  सुन्दर प्रस्तुति पर| 

Comment by कल्पना रामानी on February 22, 2014 at 7:03pm

आदरणीया, अब बढ़िया हो गईं। सब एक से एक हैं। एल्बम और डाई वाली विशेष पसंद आईं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2014 at 5:26pm

आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय 

कह-मुकरियों की इस प्रस्तुति पर आपकी मुखर सराहना मुझे किसी पारितोषिक को प्राप्त कर गर्वित महसूस करने का सुअवसर दे रही है... कह मुकरियों के आधुनिक पुरोधा के तौर पर हम सब आपको पहचानते हैं और आपको यदि यह प्रयास पसंद आया तो इन मुकरिया का होना ही सफल समझ रही हूँ.

सादर धन्यवाद आदरणीय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2014 at 5:09pm

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी, आ० नीरज जी , आ० लक्ष्मण जी , आ० श्याम नारायण वर्मा जी, राम शिरोमणि जी 

इन कह्मुकारियों पर आपकी सराह्नात्मक टिप्पणी के लिए सादर धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2014 at 5:08pm

आदरणीया कल्पना जी 

कहमुकारियों पर आपकी उदात्त सराहना के लिए हृदयतल से आपकी आभारी हूँ... डायरी वाली मुकरी में कुछ परिवर्तन किया है, अब देखें 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2014 at 5:01pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी 

आपके , आ० कल्पना जी के और आ० अरुण निगम जी के ...गहरी और डायरी शब्द की गेयता पर इंगित के बाद बहुत देर तक कल इस पंक्ति को सोचती रही....

डायरी शब्द के साथ यदि सिर्फ 'अरी' की तुकांतता मिला कर गेयता हर शब्द के साथ बाधित ही प्रतीत हो रही है... तो इसकी तुकांतता 'आयरी' के साथ ही मिलानी होगी...

मुकरी में परिवर्तन किया है..अवलोकन करके अपनी राय अवश्य ही दें 

सादर.

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 4:31pm

बहुत ही प्यारी कह-मुकरियाँ आदरणीया प्राची जी  ,हार्दिक बधाई आपको  //सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2014 at 4:07pm

आ० डॉ प्राची सिंह जी, इतनी उत्कृष्ट कह-मुकरियाँ पढ़कर मंत्रमुग्ध हूँ ! हर रचना अपनी मिसाल आप है, इस विधा के मूल सवरूप को अक्षुण्ण रख आपने जिस तरह से उच्चकोटि की लालित्यपूर्ण कह-मुकरियाँ रची हैं वह हर किसी के बस की बात नहीं। मेरी दिली बधाई स्वीकार करें।

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