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जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

 

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

कुहरा आया छाए बादल

टिप - टिप बरसा पानी ।

जाने कब मौसम बदलेगा

हार  धूप  ने   मानी ।

गौरइया भी दुबकी सोचे , जाने क्यूँ सकुचाई धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

बिजली चमकी , गरजा बादल

हवा   चली     पछुवाई ।

थर – थर काँपे तनवा मोरा

याद  तुम्हारी   आयी ।

घने बादलों मे घिर – घिर कर, लेती अब अंगड़ाई धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने  क्यूँ  अलसायी धूप ?

बढ़ी ठंड पिछले पखवारे

नहीं  दिखी  परछाईं ।

मेरे आँगन की तुलसी भी

खड़ी – खड़ी मुरझायी ।

इन्तजार मे दिन भी बीता , बादल मे शरमायी धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

                  ------ मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 7:45pm

आदरनीय बह्मचारी भाई जी , बहुत खूब सूरत गीत रचना की है , आपको कोटिशः बधाइयाँ ॥

Comment by coontee mukerji on February 2, 2014 at 3:12pm

भाई साहब ,  बहुत सुंदर रचना,हल्की फुल्की मन को भाने वाली....जाने क्यूँ  अलसायी धूप....सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 8:00am

आदरणीय ब्रह्मचारी जी एक भावप्रधान गीत के लिए हार्दिक बधाई .

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