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हम है क्या कुछ भी नहीं, ईश अंश ही सार,

मन के भीतर रोंप दे, सद आचार विचार |

 

त्याग और सहयोग का, जिसके दिल में वास

माली जैसा भाव हो, उस पर ही विश्वास |

 

समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,

भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |

 

समीकरण बैठा सके, बहिर्मुखी वाचाल,

संख्या उनके मित्र की, होती बहुत विशाल |

 

घंटों उठते बैठते, कछु न मदद की आस,

समय गुजारे व्यर्थ में, दोस्त नहीं वे ख़ास |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2014 at 9:13am

आपकी मुखर और विश्लेस्नात्मक प्रतिक्रया का मै आकांक्षी रहा हूँ आदरणीय श्री सौरभ जी, उत्साहवर्धन के लिए 

तहे दिल से हार्दिक आभार स्वकरे | सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2014 at 11:25pm

सहयोग, विश्वास और अपकार पर मुखर पाँचों दोहे अति उन्नत हैं आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.

कथ्य और तथ्य को सुगढ़ शिल्प का आधार मिला है, आदरणीय.

इन पाँचों सफल और निर्दोष दोहा छंदों के लिए हृदय से बधाइयाँ स्वीकारिये. 

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 5, 2014 at 6:33pm

उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 5, 2014 at 6:33pm

आपकी ही प्रतिक्रया की प्रतीक्षा रहती है डॉ प्राची जी | इन प्रस्तावित संशोधन पर कृपया राय से अवगत करावे -

समीकरण बैठा सके...... जोड़ तोड़ बैठा सके 

कछु न मदद की आस...  नहीं मदद की आस

सादर  

Comment by vijay nikore on February 5, 2014 at 12:10pm

इन सुन्दर दोहों के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2014 at 10:40am

सुन्दर दोहे आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

समीकरण बैठा सके...... आरम्भ जगण से हो रहा है

कछु न मदद की आस.......इसमें ज़रा सी गेयता अवरुद्ध है

सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2014 at 6:49pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार श्री रमेश कुमार चौहान जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:29pm

आदरणीय लक्ष्मणजी , सभी दोहे सुंदर  बन पडे है, सादर बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 3, 2014 at 6:56pm

हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी, श्री बृजेश नीरज जी, श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, श्री विजय मिश्र जी,

एवं श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by ram shiromani pathak on February 3, 2014 at 12:08pm

समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,

भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |//////बहुत सुन्दर

सुन्दर दोहे .. बधाई आदरणीय | सादर

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