For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
के सिर कदमों में रखते हैं और दिल लूट लेते हैं ।

कि जिन लहरों के तूफानों ने लूटी कश्तियाँ लाखों ,
उन्हीं लहरों के आवेगों को साहिल लूट लेते हैं ।

शाख से टूटकर अपनी बिखर जाते हैं जो तिनके ,
बनाने को घरौंदे उनको हारिल लूट लेते हैं ।

अदब तो दोस्ती का है पर अदायें दुश्मनों सी हैं ,
के हमारा चैन उनके नैन कातिल लूट लेते हैं ।

मोहब्बत करने वालों का ख़ुशी से वास्ता क्या है ,
यहाँ तो दर्द के कतरे भी संग दिल लूट लेते हैं ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज 'प्रेम'

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2014 at 6:19pm

आदरणीय प्रेम भाई , प्रेम बड़ी चीज़ है , जो बन्धन होते हुये भी आपको बंधन का एहसास नही होने देता , क्योकि प्रेम के वश मे बंधन को स्वीकार किये होते हैं , खुशी खुशी । मेरा आपसे यही निवेदन है , अगर आपको गज़ल विधा से प्यार है तो आपको बंधन का एहसास ही नही होगा , न ही होना चाहिये । और आप सीख भी जल्दी ही लेंगे । लेकिन अगर प्यार नही है तो बोझ समझ कर ग़ज़ल सीखने मे बहुत मुश्किल होगी / आयेगी । मज़बूरी के रिश्ते बोझ ही लगते हैं । आदरणीय वीनस भाई का कहना सही है , निर्बंध हो के भी आप अपने भावों को व्यक्त कर सकते है , गद्य के रूप में , आपने अच्छे से किया भी है !  अगर आप विधा स्वीकारते हैं तो प्रेम से खुशी से स्वीकार करें तभी सीखना सार्थक और सफल होगा ॥ सादर ॥

Comment by विजय मिश्र on January 9, 2014 at 6:14pm
पढ़ने के बाद मन मचलता है ,इस दृष्टि से कविता सार्थक है |बधाई नीरजजी
Comment by वीनस केसरी on January 9, 2014 at 5:53pm

भाई नीरज मिश्रा "प्रेम" जी अगर कविता में आज़ादी के पक्षधर हैं तो वैसा ही लिखिए जैसा ये पिछला कमेन्ट लिखा है ,,
जिस तरह आपने इस कमेन्ट को लिखते समय कोई मात्रा नहीं जोड़ी कोई बंधन नहीं रखा ,, बस भावनाओं को पटल पर प्रस्तुत कर दिया ... ये बहुत अच्छा उदाहरण बन सकता है ... अपनी कविता भी ऐसी ही लिखिए ,, हर बंधन से मुक्त,,, कविता का गणित कठिन ही नहीं बहुत कठिन है ... नियम पेचीदा हैं 

महफ़िल लूट लेते हैं / दिल लूट लेते हैं ... के चक्कर में पड़ कर आप क्यों तुकांतता का बंधन पाले बैठे हैं .... और अगर सच में ये रोग आपको प्रिय है तो फिर इसकी हद से गुज़ारना चाहिये ... बहर को जान समझ लीजिये तो रचना को विधागत संज्ञा प्राप्त हो जाए ... वर्ना ऐसी रचनाओं को जानकारों ने "तुकबंदी" संज्ञा तो दे ही रखी है .... मगर ये संज्ञा अक्सर कवियों के क्षोभ का कारण बनती है
शुभकामनाएं

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 5:37pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
कभी अपनी चतुराई अपनी होशियारी से दूर अपनी बुद्धि के तर्कों और गणित आदि जंजालों
से मुक्त अपने ह्रदय के द्वार पर अपनी निर्दोष अवस्था में अपनी मासूमियत में स्वयं को सुकून
में डुबो देने वाला गायन कला का एक द्वार खोजा था एक गायक कि तरह नही बल्कि एक भावनाओं
को सहेजने वाले किसी कवि कि तरह जहाँ मै पूरी ईमानदारी से खुद को रख सकूँ जहाँ मै हिसाब किताब
के बंधनो से मुक्त रहूँ जहां आकाश में उड़ते हुए किसी पक्षी कि तरह खुद को महसूस कर सकूँ जो दिल में आये
बस गुनगुनाता जाऊँ और सबकुछ भूलकर डूब सकूँ अपनी पंक्तियों को बार बार गाकर अपनी अस्मिता को
खो सकूँ क्यों कि अस्मिता में बहुत पीड़ा पायी मैंने , सोचा नही था जाना नही था यहाँ भी गणित चलता है
यहाँ भी हिसाबों में ही रहना पड़ता है यहाँ भी दायरे हैं यहाँ भी छते हैं यहाँ भी सिमट कर ही रहना होगा
यहाँ भी अनंत फैलाव नहीं उपलब्ध होता है खैर मैंने आप सबों कि तरह बहुत कुछ सीखने का प्रयास किया है
और आप सब लोगों से ही बहुत सारा लगाव भी हो रखा है आप सब लोगों से । झूठी अन्जानी दुनिया कि भीड़ में आप सब जैसे
कुछ लोग जाने पहचाने लगते हैं इस लिए देखना चाहता हूँ कविता का गणित भी सीख कर और सतत प्रयास भी करूंगा
फिलहाल मैंने कि कोशिश कि है आप देख लें और अगर गलत बनी हो तो फिर कोशिश करूंगा। ……।

दीवाने भी अज़ब हैं वो जो महफ़िल लूट लेते हैं ।
2222 2122 2222 2122

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 5:04pm

आदरणीय सम्पादक जी बहुत बहुत अनुग्रहीत हूँ आपसे और मै बहुत शीघ्र ग़ज़ल कक्षा में इस दोष का अध्ययन करके
ठीक करने का प्रयास करूंगा सादर

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 5:04pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 5:01pm

आदरणीय बृजेश जी बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 5:00pm

आदरणीय आमोद जी बहुत बहुत आभार ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 4:57pm

आदरणीया कुंती जी बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 9, 2014 at 4:55pm

आदरणीय कविराज बुंदेली जी बहुत बहुत आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service