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ग़ज़ल - माँ जो होती है तो घर लगता है ! (अभिनव अरुण)

ग़ज़ल
फाइलातुन फइलातुन फैलुन \ फइलुन
२१२२ ११२२ २२ \ ११२

वर्ना अन्जान शहर लगता है
माँ जो होती है तो घर लगता है |

दौर कैसा है नई नस्लों का,
वक़्त से पहले ही पर लगता है |

है इधर रंग बदलती दुनिया,
मैं चला जाऊं उधर लगता है |

जाने किस दर्द से गुज़रा होगा ,
शेर जज़्बात से तर लगता है |

इस ऊंचाई से न देखो मुझको ,
दूर से सौ भी सिफर लगता है |

इन चटख फूलों में मकरंद नहीं ,
ये दवाओं का असर लगता है |

इन घरोंदों में ये ख़ामोशी क्यों ,
कागज़ी है ये शजर लगता है |

खाप पंचायतें हैं घर घर में
इश्क़ के नाम से डर लगता है |

जाने किस बात पे खंज़र निकले
बात करते हुए डर लगता है |

* सर्वथा मौलिक \ अप्रकाशित

- ०२०१२०१४ (C)&(P) - अbhinav अrun

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on January 4, 2014 at 7:17am

आ. कवि राज बुन्देली जी बहुत शुक्रिया आपने उत्साह बढ़ाया ..आभार !! 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 8:15pm

वाह वाह वाह,,,,,भाई ,,,अभिनव अरुण जी ,,,,,,इस शानदार गज़ल हेतु आपको कोटि कोटि बधाइयां,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 6:58pm

आदरणीय श्री जितेन्द्र जी अशआर पसंद आये लिखना सार्थक हुआ आभारी हूँ नव वर्ष की आपको भी सपरिवार मंगल कामनाएं !!

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 6:57pm

आदरणीय श्री अखिलेश जी आपको भी सपरिवार नूतन वर्ष मंगलमय हो !! आभार रचना की सराहना के लिए 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 3, 2014 at 3:16pm

"आदरणीय अभिनव अरुण   भाई , नया वर्ष आपके व पूरे परिवार के लिए मंगलदायी  हो॥ सुंदर गज़ल  की हार्दिक बधाई॥ .......सप्रेम राधे- राधे।"

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 3, 2014 at 12:08pm

वर्ना अन्जान शहर लगता है
माँ जो होती है तो घर लगता है..........इक गहरा सच

इस ऊंचाई से न देखो मुझको ,
दूर से सौ भी सिफर लगता है........क्या बात है,बहुत खूब

खाप पंचायतें हैं घर घर में
इश्क़ के नाम से डर लगता है...........सच कहता हुआ शेर

आदरणीय अभिनव जी, शानदार गजल पर दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 7:15am

रचना पसंद करने और उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार आदरणीय महिमा जी ..नव वर्ष मंगलमय हो !!

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 7:14am

आदरणीय श्री गिरिराज जी आप का बड़प्पन है बहुत शुक्रिया बहुत आभार ग़ज़ल धन्य हुई 

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 7:13am

आदरणीय श्री धर्मेन्द्र सज्जन जी कोशिश पसंद आई कृतज्ञ हुआ आभार 

Comment by Abhinav Arun on January 3, 2014 at 7:12am

ग़ज़ल पर मंतव्य व्यक्त करने के लिए आभार आदरणीया कुंती जी आपसी समर्थ रचनाकार की टिप्पणी आशीर्वाद सदृश है 

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