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नवगीत - नये साल की धूप // --सौरभ


आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे..
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना.. .
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
 
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
*********
-- सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:58pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी,

यह अलग भावभूमि की रचना है. ऐसी रचनाओं में गीतपन और कथ्य का मिलाजुला रूप होता है. यानि, गेयता होती है.  इसतरह के बिम्बों से संतुष्ट हुई रचना नवगीत कहलाती है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:55pm

हृदय से धन्यवाद भाईजी, रचना रुचिकर नहीं लगी तो कोई बात नहीं.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:53pm

आदरणीया कल्पनाजी, आपकी संवेदनशील दृष्टि ने इस रचना को जो मान दिया है वह मेरे लिए भी थाती है.
हृदय से आपकी सदाशयता को स्वीकार कर धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:50pm

बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीया वन्दनाजी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:50pm

भाई अजयजी, आपने रचना को समय दिया, यह मेरे लिए भी परम संतोष की बात है. स्नेह बना रहे.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:46pm

आदरणीया शशिजी, आपने प्रस्तुति पर समय दिया यही मेरे लिए बहुत है.
हृदय से धन्यवाद कह रहा हूँ.

//मात्रा गिनने पर हमें समझ नहीं आया कहाँ जोड़े और कहाँ नहीं , मात्रिक बंद  की  पंक्तिया हमें अलग अलग लगी , सामान्यतः पक्तियों के अनुसार हम गिन लेते है मार्गदर्शन प्रदान करें //

जी सही, कहा आपने, हम सामान्यतया किसी रचना की कुल पद-मात्रा को पंक्तियों की मात्राएँ गिनकर समझ लेते हैं. लेकिन, आदरणीया, यही तो यहाँ भी है ! आप जैसे मात्राएँ गिनती हैं वही यहाँ भी करें. बस पंक्तियाँ भावों के अनुसार तोड़ दी गयी हैं. आपको पंक्तियों को पहचानना है.

इतना इत्मिनान रखिये, आपको प्रत्येक पंक्ति में सटीक मात्राएँ मिलेंगी. कुल मात्रा एक समान है,  न एक अधिक, न एक कम !
वैसे आप तो स्वयं नवगीत विधा की प्रखर रचनाकार हैं. हम आपकी रचनाओं का सम्मान करते हैं.

फिर ऐसे प्रश्न ?


सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:38pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपने जिस उत्साह और आत्मीयता से मेरे प्रयास को मान दिया है, वह मुझे अभिभूत कर रहा है तथा यह भी अभिव्यक्त हो रहा है कि एक संवेदनशील हृदय किसी संवेदनापूरित बिम्ब को कितना अपनापन देता है.

इस उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.   

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:32pm

भाई आशुतोषजी,
मुझे इस बात हार्दिक कष्ट है कि आपकी कसौटियों पर यह रचना बनी नहीं रह पायी. फिर भी हार्दिक निवेदन है, काश आप इस रचना को एक बार ठीक से पढ़ गये होते.

भाईजी, मेरी रचनाओं की ऐसी भी एक इमेज है, कि वे क्लिष्ट मान ली जाती हैं ! अन्यथा, मुझे इस रचना की किसी पंक्ति में उस हिसाब से कोई शब्द क्लिष्ट की श्रेणी का नहीं लगा.

आपने इसी मंच के छंद विधान समूह को कभी क्लिक किया है क्या ? वहाँ इसके विधान पर चर्चा है.

मग़र, आप तो वैसे भी ग़ज़ल के अलावे किसी अन्य रचना को कम ही पढ़ते हैं.
आपकी ग़ज़लों का मैं भी प्रशंसक हूँ.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:32pm

बहुत-बहुत धन्यवाद, नादिर भाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2013 at 10:32pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपको कहन का लालित्य भला लगा सामझिये मेरा रचना-प्रयास सफल हुआ.
सादर

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