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एक रात अचानक पुलिस वाले उसे उग्रवादी बता कर घर से उठा कर ले गए. क्या क्या ज़ुल्म नहीं किये गए थे उस पर. वह चीख चीख कर खुद को बेनुगाह बताता रहा लेकिन सब कुछ सुनते हुए भी सरकारी जल्लाद बहरे बने रहे. यातनाएं सहते सहते तक़रीबन छह महीने बीत गए थे. तभी एक दिन सरकार ने अपनी नई नीति के अनुसार उसे रिहा कर दिया ताकि वह भी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो सके. उसके वापिस लौटने से घर में ख़ुशी का वातावरण था, लेकिन वह जड़वत बैठा न जाने कहाँ खोया रहता. वृद्ध पिता ने एक दिन उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा:

"बहुत दिन हो गए तुम्हें वापिस आए हुए, कुछ काम काज का सोचा?"
"नौकरी तो अब मिलने से रही..... तो ……"
"बेटा, अगर कहो तो लोन लेकर तुम्हें एक टैक्सी दिलवा दें?"      
"टैक्सी नहीं, मुझे एक बन्दूक दिलवा दो बापू." 
अंदर की आग अब उसकी आँखों में उतर आई थी। 
.
(मौलिक व अप्रकाशित)

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:23pm

आपकी इस सुन्दर प्रतिक्रिया ने मेरा उत्साह बढ़ाया है, सादर धन्यवाद आ० राजेश कुमारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:23pm

आपने रचना समय दिया और पसंद किया, मैं इसके लिए हृदयतल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ आ० अविनाश बागडे जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:22pm

आपकी बधाई सर आँखों पर आ० वंदना जी, सादर धन्यवाद 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:22pm

धन्यवाद प्रिय गीतिका जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:21pm

डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आपके उत्साहवर्धन से ह्रदय गदगद है, सादर धन्यवाद स्वीकारें।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:21pm

रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए हार्दिक आभार भाई शुभ्रांशु जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:21pm

धन्यवाद आ० महेश्वरी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:21pm

धन्यवाद श्याम नारायण वर्मा जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:21pm

दिल से शुक्रिया भाई संजय मिश्रा हबीब जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 9, 2014 at 12:20pm

उत्साहवर्धन हेतु दिल से धन्यवाद भाई राजेश कुमार मृदु जी.

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