For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों चले आए शहर (नवगीत) - कल्पना रामानी

क्यों चले आए शहर, बोलो 

श्रमिक क्यों गाँव छोड़ा?

 

पालने की नेह डोरी,  

को भुलाकर आ गए।

रेशमी ऋतुओं की लोरी,

को रुलाकर आ गए।

 

छान-छप्पर छोड़ आए,

गेह का दिल तोड़ आए,

सोच लो क्या पा लिया है,

और  क्या सामान जोड़ा?

 

छोडकर पगडंडियाँ

पाषाण पथ अपना लिया।

गंध माटी भूलकर,

साँसों भरी दूषित हवा।

 

प्रीत सपनों से लगाकर,

पीठ अपनों को दिखाकर,

नूर जिन नयनों के थे, क्यों

नीर उनका ही निचोड़ा?    

 

है उधर आँगन अकेला,

और तुम तन्हा इधर।

पूछती हर रहगुज़र है,

अब तुम्हें जाना किधर।

 

राज जिनसे मिला चोखा,

क्यों  उन्हें ही दिया  धोखा?

विष पिलाया विरह का,

वादों का अमृत घोल थोड़ा।

 

भूल बैठे बाग, अंबुआ

की झुकी वे डालियाँ।

राह तकते खेत, गेहूँ

की सुनहरी बालियाँ।

 

त्यागकर हल-बैल-बक्खर,

तोड़ते हो आज पत्थर,

सब्र करते तो समय का,

झेलते क्यों क्रूर कोड़ा?

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:26pm

क्या खूबसूरत नवगीत...

सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना रामानी जी...

Comment by राजेश 'मृदु' on December 18, 2013 at 5:02pm

आपकी टिप्‍पणी के बाद अब सबकुछ स्‍पष्‍ट हो गया है आदरणीय कल्‍पना दी, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 18, 2013 at 4:22pm

अपनी मिट्टी अपने गाँव को छोड़, शहर को पलायन कर जाने वाले एक श्रमिक से बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी सवाल करता बहुत खूबसूरत नवगीत आदरणीया कल्पना जी 

बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें 

Comment by coontee mukerji on December 17, 2013 at 11:06pm

है उधर आँगन अकेला,

तुम हो एकाकी इधर।

पूछती हर रहगुज़र है,

अब तुम्हें जाना किधर।

 

जिनसे पाया राज चोखा,

दे दिया उनको ही धोखा,

विष पिलाया विरह का,

वादों का अमृत घोल थोड़ा.........अति सुंदर.

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:25pm

आदरणीय सुशील जी, उत्साहवर्धन करती हुई टिप्पणी के लिए हृदय से आभार

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:23pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, बहुत बहुत धन्यवाद

सादर

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:22pm

मीना जी सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:21pm

वीनस जी, आपका रचना पर आना और सराहना अच्छा लगा। हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:20pm

अदरणीय गिरिराज जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on December 17, 2013 at 10:19pm

आदरणीय तपन जी,प्रोत्साहित करने के लिए  सादर धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service