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"अंकल, इस बार सामान के बिल में सौ-दो सौ रूपये जरा बढाकर लिख देना, आगे मैं समझ लूँगा"  रोहन ने दुकानदार से कहा.

"ऐसा ?.. पर बेटा, यह तो तुम्हारे घर की ही लिस्ट है न ?" दुकानदार को बहुत आश्चर्य हुआ.

"हाँ है तो. पर क्या है कि पापा आजकल पॉकेटमनी देने में बहुत आना-कानी करने लगे हैं.. " रोहन ने अपनी परेशानी बतायी.

(संशोधित)

जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:21am

आपकी सराहना हेतु आपका हृदय से आभार, आदरणीय अखिलेश दुबे जी, स्नेह बनाये रखिये

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:18am

आपकी प्रतिक्रिया से संशोधन में बहुत सहयोग मिला, आपका हृदय से आभार आदरणीय रवि जी, स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:16am

आपका हृदय से आभार आदरणीय राहुल देव जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:14am

आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय डा.आशुतोष जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:11am

आपने अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखनी का मनोबल बढाया, आपका हृदय से आभार आदरणीया मीना दीदी

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 21, 2013 at 9:07am

बहुत अच्छा रंग दिया है भाई जितेन्द्र जी इस लघुकथा के लिये बधाई आपको

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 9:05am

आपके विस्तृत मार्गदर्शन व् पाठकधर्मिता हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया राजेश जी, अपना स्नेहिल मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 8:59am

आपकी प्रतिक्रिया //आखिर लेखक कहना क्या चाह रहा है,// से मुझे संशोधन में बहुत सहयोग मिला, आपका हृदय से आभार आदरणीय गणेश जी, अपना स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 8:37am

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 21, 2013 at 8:34am

आपके  स्नेहिल //योगराज जी ने एक बिन्दु को उठाया भी है. अगर रोहन का सुची से सन्बन्ध, उसकी उम्र बात साफ़ रहती तो कथा और कसी हुई होती// मार्गदर्शन से लघुकथा  का संशोधन करने में बहुत सहयोग मिला, आपका हृदय से आभार आदरणीय शुभ्रांशु जी, अपना स्नेह व् सहयोग बनाये रखियेगा

सादर!

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