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गूँजी फिजाएं ......................डॉ० प्राची

वर्जना के टूटते

प्रतिबन्ध नें- 

उन्मुक्त, भावों को किया जब, 

खिल उठीं

अस्तित्व की कलियाँ 

सुरभि चहुँ ओर फ़ैली, 

मन विहँस गाने लगा मल्हार...

...फिर गूँजी फिजाएं 

जब सरकता चाँद पूनम

छत चढ़ा,

तारों नें झिलमिल 

दीप उत्सव में जलाए, 

प्राण प्रिय नें

हाथ थामा, 

सिहरते पल नें किया शृंगार...

..फिर गूँजी फिजाएं 

बधिर साँकल,

बंद खिड़की

ख्वाब की - घुटती सिसकती, 

ले कहीं से

अंजुरी भर 

हौसले की रश्मियों को,

जब खुली, पा नभ तलक विस्तार...

..फिर गूँजी फिजाएं 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:41pm

नवगीत आपको पसंद आया यह जान अच्छा लगा ..हार्दिक धन्यवाद आ० मीना पाठक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:37pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० वन्दना जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:36pm

नवगीत के भावों पर आपकी सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० संदीप पटेल जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:33pm

रचना के भावों की सराहना के लिए धन्यवाद आ० जीतेंद्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:32pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी 

प्रस्तुति आपको बार बार पढने को आमंत्रित करती लगी ..ये मेरे लिए परम संतोष की बात है 

सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:31pm

प्रिय अरुण शर्मा अनंत जी 

नवगीत के भाव प्रवाह माधुर्य पर आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 11:24pm

आदरणीय सौरभ जी

नवगीत के प्रथम बंद की भावदशा की सराहना के लिए सादर धन्यवाद..

इस बार अलग शैली में नवगीत को बहुत लम्बी पंक्तियों में प्रस्तुत करने का एक प्रयोग किया है..

जिसे मैंने (२१२२   २१२२   २१२२   २१२२ )X 3 की लय पर साधने का प्रयास किया है..

द्वितीय बंद का जो अंश आपने इंगित किया है आदरणीय उसमें गेयता आपको बाधित लगी..पर मैंने जैसे लिखा है मुझे निर्बाध लग रही है.... फिर भी आदरणीय आप जिन बातों को बहुत सूक्ष्मता से देख जाते हैं, मुझ जैसे एक सामान्य रचनाकार को वो आपके समझाने के बाद भी समझने में बहुत समय लगता है..  आपसे सादर अनुरोध है की वहां गेयता बाधित होने के कारण को कृपया स्पष्टतः कहें..( यदि शब्द समुच्चय के नज़रिए से सम के बाद सम और विषम के बाद विषम शब्दों को न रखा जाना कारण है ...तो आग्रह है एक बार पूरे बंद को २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ X3 में पढ़ें , यदि फिर भी बाधित लग रही है तो .... ) मैं अवश्य ही सुधार करने का प्रयत्न करती हूँ ...

और तीसरे बंद में //हम्म्म ...ये ब्बात ...  :-)))))))))) // पर  ....हाहाहा :))) 

रचना की भाव दशा व एक नए प्रयोग पर आपके प्रोत्साहित करते अनुमोदन के लिए सादर धन्यवाद 

Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 6:52pm

अनुपम रचना हुई आदरणीया प्राची जी | बहुत बहुत बधाई स्वीकारें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 4:47pm

आदरनीया प्राची जी , हमेशा की तरह आपके रचना मनहोहक  है , शब्दो का चयन ,सन्योजन  बहुत बढ़िया है !!! आपको हार्दिक बधाई !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 22, 2013 at 2:30pm

नवगीत के शब्द संयोजन को सराहने के लिए आभार आ० डॉ ० आशुतोष मिश्रा जी 

कृपया ध्यान दे...

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