For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम 

और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'

-जिसे पहचानते हो तुम !

उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा 

एक अभिन्न को-

खामोश मन मंथन की गहराइयों में 

चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में 

पराचेतन की दिव्यता में.....

पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'

क्या पहचान भी पाओगे 

अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-

एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 1269

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 13, 2013 at 10:05pm

उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा ...... बहुत सुंदर रचना बधाई स्वीकार करें ... आ0 प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 9:26pm

अपने ’स्व’ को बूझ लेने का प्रक्रम सनातन है. यह देही साधन मात्र है जिसकी संज्ञा ’मैं’ या ’तुम’ से इंगित होती रही है.
यदि श्री मद्भग्वद्गीता के अनुसार ’..अस्थिता जनकादयः’ को मानक माना जाय तो सांसारिक कर्म को अन्यथा समझने की भूल होगी ही नहीं. उच्च सचेतावस्था का अर्थ ही है कि एक हाथ से तात्विकबोध की पराकाष्टा का टटोलना हो तो दूसरे हाथ से सांसारिकता के गूढ़तम को साधना हो. कविता के मुख्य पात्र का ढंग ऐसा ही होने से मन आश्वस्त हुआ है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 8:27pm

रचना में सन्निहित कथ्य आपको पसंद आया ..आपकी आभारी हूँ आ० शिवराम सिंह जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 8:25pm

अचना के भावदशा सम्प्रेषण पर आश्वस्त करते आपके अनुमोदन के लिए सादर आभार आ० अरुण निगम जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 8:10pm

रचना के भावों पर आपके अनुमोदन के लिए आभार आ० जितेन्द्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 8:03pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

इस अभिव्यक्ति की भाव परिधि में कुछ पल ठहरने के लिए आपका धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 8:01pm

अभिव्यक्ति पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद प्रिय गीतिका जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 7:40pm

आदरणीय शरदिंदु जी 

प्रस्तुति की भाव दशा को गहनता से महसूस करने का आपका प्रयास...नत करता है. बहुत बहुत धन्यवाद.

रचना को स्पष्ट करने के क्रम में और यही कहना चाहूंगी कि आबद्ध चिरमुक्त 'तुम' तो आनंदस्वरुप है...उसका सिसकना कैसा....वो तो बस स्थित है अपनी high vibrational frequencies में.....same vibrational frequencies की ओर प्रवृत्त होना तो प्रकृति का नियम ही है...क्या एक इकाई में निहित मुक्तिबोध को प्राप्त सत्ता वैसे ही किसी और इकाई में निहित उस अव्यक्त सत्ता को पहचान सकती है... यही इस रचना में निहित है.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 7:27pm

अभिव्यक्ति की भाव दशा पर आपके अनुमोदन के लिए आभारी हूँ आदरणीया अन्नपूर्ण बाजपेयी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 13, 2013 at 7:26pm

आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

रचना की अंतर्धारा आपको पसंद आयी..यह जानना सुखाकर है...आपका हृदय से आभार.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service