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ग़ज़ल - चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है

चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।

बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।

वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।

हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।

माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 8:11am

आदरणीय गिरिराज सर दरअस्ल "चेह्रा" की तरह कहा जाता है,जिसे "चेहरा" लिखा जाता है लेकिन इसका वज्न 22 ही होगा न कि 212,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 7:58am

आदरणीय कुमार भाई , जो मिसरा सामने है उसके अनुसार , चेहरा -212 होगा आप  चेहरा को 22 मे बान्ध करे है , ये कितना सही कितना गलत है मै नही कह सकता !!!!! किसी बडे शायर ने ऐसा किया होगा तो सही भी हो सकता है !!!!! 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:20am

उत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ मित्र राम पाठक जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:18am

बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेई जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:17am

आदरणीय निलेश जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:16am

सादर आभार आदरणीय मोहन जी..........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:16am

हार्दिक आभार आदरणीय उमेश कटारा जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:14am

आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ। एक मनोभाव को शब्द देने की कोशिश की है बस। आपकी प्रतिक्रिया मनोबल को बढ़ानेवाली है। दिल से धन्यवाद आपको............

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:06am

आदरंणीय  Shijju Shakoor जी, आदरणीया rajesh kumari जी एवं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सर्वप्रथम तो प्रोत्साहन एवं स्नेह हेतु आप सभी का हृदय से आभार......

तकनीकी पक्षपर आपसे यहाँ परामर्श अपेक्षित है, मैंने तीसरे शेर को इस तरह से लिखा है

हँस रहा चेह/ रा मेरा तुम/ तो बस इतना/ जानते,
2122/ 2122/ 2122/ 212

हँस रहा चह/ रा मेरा तुम/ तो बसितना/ जानते
2122/ 2122/ 2122/ 212

चेहरा को "चहरा" की तरह उपयोग होते कहीं-कहीं देखा है सो वैसे ही उपयोग किया और "बस इतना" को "बसितना" की तरह (शायद इस नियम को आलिफ वस्ल कहा जाता है) ग़ज़ल की बारिकियाँ तो नहीं जानता अतः मार्गदर्शन किया जाए........सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:28pm

आदरणीय अजीतेंदु जी बढ़िया ग़ज़लबहुत बहुत बधाई। …सादर 

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