For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बताशा लगती हो तुम

बताशा लगती हो तुम

.

हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,

घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,

जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,

तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,

आँखें मूँद कर मृतप्राय हुए चित में यूँ,

सुंदर, सजग अभिलाषा लगती हो तुम,

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।

----------------------------------- सुशील जोशी

“मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 1181

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 8:58pm

हिंदी के सामान प्यारी ,तिमिर हटाने वाली ,आशा जगाने वाली ,अभिलाषा वाह वाह सुनकर कौन पत्नी खुश नहीं हो जायेगी... 

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।------हाहाहा देखियेगा डाइबिटीज न हो जाये :):):)

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:23pm

आदरणीय सुशील भाई जी,सुन्दर प्रस्तुति …बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर 

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:29pm

रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 केवल भाई जी....

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:28pm

वाह वाह..... क्या खूब कहा है आ0 अरुन निगम जी..... वाह.... आपका अनुमोदन तो सचमुच आशीर्वाद स्वरूप होता है...... बहुत बहुत आभार.....

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:26pm

रचना पर आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आ0 जितेन्द्र भाई जी......

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 10, 2013 at 12:49pm

आदरणीय सुशील भाई जी, बहुत खूब! सुन्दर विचार। हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 8:35am

सुन्दर सुशील सभी,हमें उपमान लगे,

भीग गया तन-मन, वाह रसधार में 

प्रेम में जो डूब जाये,प्रेम का बताशा खाये 

तट में वो मजा कहाँ,जो है मँझधार में................... 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2013 at 12:38am

आदरणीय डा. गोपाल जी// मैंने   पहली  बार किसी को  अपनी प्रेमिका हिंदी  जैसी  प्यारी कोमल सुरीली व् मृदु क्हते सुना//की प्रतिक्रिया के साथ सहमत हूँ, व् मैंने भी बताशा पहली बार सुना, आदरणीय शुशील जी रचना में इन दोनों कहन से एक अजीब अंदाज में सुन्दरता का बखान हो रहा है, वैसे ही जैसे कोई मासूम बच्चा, अपनी मासूमियत में किसी की तारीफ करे, पूर्णत: निर्मल मन से..रचना पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:14pm

बहुत बहुत आभार आपका आ0 अखिलेश जी.....

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:14pm

स्नेहिल टिप्पणी हेतु सादर आभार आ0 अरुन भाई......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service