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“इन्सपैक्टर साहब, मैं तो कहती हूँ कि हो न हो मेरे गहने मेरी सास ने ही चुराए हैं..... बहुत तिरछी नज़र से देखती थी उनको...... अब सैर के बहाने चंपत हो गई होगी उन्हें लेकर।“ – बड़े गुस्से में रौशनी ने कहा

वहीं रौशनी का पति दीपक चुपचाप खड़ा था।

इससे पहले की इन्सपैक्टर साहब कुछ कहते रौशनी की सास घर वापस लौटती दिखी। अपने घर पर भीड़ देखकर वे कुछ परेशान हुईं और कारण जानकर वे फिर से साधारण हो गईं जैसे कि वे चोर के बारे में जानती हों। अंदर अपने कमरे में जाकर वो दो कड़े और एक चेन लेकर वापस आईं और रौशनी को देते हुए बोलीं – बहू यह लो अपना सामान। कल तुमने इन्हें उतारकर ड्राइंग रूम में ही छोड़ दिया था। सुबह सैर को जाते समय मेरी नज़र इन पर पड़ी तो उठाकर अपनी अलमारी में संभाल कर रख दिया। तुम तो सो रही थीं ना। फिर एक नज़र उन्होंने दीपक पर डाली और फिर से अपने कमरे में चली गई।

दीपक अभी भी मौनव्रत खड़ा था।

.

 सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by विजय मिश्र on October 26, 2013 at 4:49pm
यही आजके अधुनातन परिवार की मर्यादा है और संस्कार भी . कमाऊ पूत को कमाऊ बहु ला दीजिए और सारे खानदान को नंगा करवा लीजिए . "वाणी के संयम का अभाव " सर्वत्र व्याप्त हो रहा है . इस परिप्रेक्ष्य में आपकी कथा एक चेतावनी है .बहुत सुंदर सुशीलजी .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 26, 2013 at 3:13pm

 न संस्कारित बहू न संस्कारित बेटा , उस पर जोरू का गुलाम तो यही होगा परिणाम। बधाई सुशील भाई। 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 26, 2013 at 1:38pm

बहुत सुन्दर ...सजीवता है भावों में ..! एक अच्छी और संदेशप्रद लघुकथा ! बधाई आदरणीय ...:)

Comment by Sarita Bhatia on October 26, 2013 at 12:06pm

सुंदर संदेशात्मक लघु कथा सुशील भाई हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2013 at 10:49am

सच! अपनी अनुशाशनहीनता व् आवेश में कभी-कभी इन्सान, इससे भी बड़ी गलतियाँ कर बैठता है, और उन गलतियों के दुष्परिणाम को, दूसरों के माथे मढ़ता है, आज के समय को देखते हुए, सार्थक व् संदेशप्रद लघुकथा पर बधाई, स्वीकारें आदरणीय शुशील जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2013 at 10:32am

क्या कहूँ नालायक दब्बू बेटा या कुसंस्कारी बहु जो भी हो ये दुखद सिर्फ माँ के लिये है लेकिन माँ समझदार थी इसलिये बात सँभल गईl

 
बहुत बढ़िया आदरणीय सुशील जी इस लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें

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