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ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,

मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:17pm

हार्दिक आभार श्याम जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2013 at 8:16pm
//हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,

मुहब्बत में परेशानी अजब सी झुन्झुलाहट है,//

बेहतरीन मतला, इस तरह की रदीफ़ उठाना बड़ी कलेजे की बात है, मिसरा सानी जरा उलझ रहा है, यदि ऐसे कहें तो   …… 

मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

अच्छी लगी ग़ज़ल, थोड़ी और मसक्कत होनी चाहिए थी, बधाई प्रेषित है ।  

 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 24, 2013 at 7:06pm

बेजोड़ है अरुन साहिब ...

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...क्या कहने ! उम्दा :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 24, 2013 at 6:47pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , बहुत सुन्दर , लाजवाब गज़ल कही है !!!! आपको तहे दिल से बधाई !!!

चिडचिढाहट   को   चिडचिड़ाहट - कर लीजियेगा - टंकण की गलती हो गयी है !!!!!

Comment by Shyam Narain Verma on October 24, 2013 at 5:58pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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