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!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!

!!! नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से !!!
दुर्मिल सवैया - (आठ सगण-112)

तन श्वेत सुवस्त्र सजे संवरें, शिख केश सुगंध सुतैल लसे।
कटि भाल सुचन्दन लेप रहे, रज केसर मस्तक भान हसे।।
हर कर्म कुकर्म करे निश में, दिन में अबला पर ज्ञान कसे।
नित धर्म सुग्रन्थ रचे तप से, मन से अति नीच सुयोग डसे।।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2013 at 9:06am

आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम!  सर जी, आपका मार्गदर्शन सदैव ही ज्योतिपुंज के समान होता है। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2013 at 9:01am

आ0 बृजेश भार्इ जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से आभार।  सादर,

Comment by वेदिका on October 24, 2013 at 8:57am

बहुत सुंदर छ्ंद प्रस्तुत हुआ है| आज के तथाकथित धर्मगुरुओं के परिपेक्ष्य में घना कटाक्ष किया|

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 11:41pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति, बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2013 at 10:26pm

दुर्मिल सवैया का बढिया प्रयास हुआ है.  आपने उन लोगों की बखिया उघेड़ने की कोशिश की है जो बाह्याडंबरों को मान देते हैं लेकिन अंदर से विक्रुत हो कर र कुकर्म करते हैं. आप प्रयासरत रहें, केवल भाईजी.

हसे और डसे का क्या अर्थ हुआ ?

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on October 23, 2013 at 10:23pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 7:02pm

आदरणीय राजेश भार्इ जी,  सादर प्रणाम! बह़ुत दिनों बाद आपकी उपसिथति से बडी खुशी हुर्इ। आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन से मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 6:59pm

आदरणीय विजय सर जी,  सादर प्रणाम! बह़ुत दिनों बाद आपकी उपसिथति पाकर बडी खुशी हुर्इ। आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन से मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 6:51pm

आदरणीय अखिलेश भार्इ जी, आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन से मेरा आत्मबल बढ़ा है। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 6:48pm

आदरणीय राम शिरोमणि भार्इ जी,  सादर प्रणाम! बह़ुत दिनों बाद आपकी उपसिथति पाकर बडी खुशी हुर्इ। आपके अपार स्नेह और छन्द अनुमोदन से मेरा आत्मबल बढ़ा है। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

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