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दिल में हमारे कैसे ये तूफ़ान जिन्दा रह गया

दिल के बिना जैसे कोई नादान जिन्दा रह गया

वैसे हो बेघर इक हसीं अरमान जिन्दा रह गया 

 

है आदमी ही आदमी की जान का दुश्मन हुआ

यारों खुदा का है करम इंसान जिन्दा रह गया

 

टूटा हमारा  हौसला उम्मीद फिर भी थी जवां

रख आरजू जीने की ये बेजान जिन्दा रह गया

 

मेरे खुदा मुझ पर तेरा रहमो करम हरदम रहा

तूफ़ान में अदना सा ये इंसान जिन्दा रह गया

 

लगते रहे हर रोज ही इल्जाम तो हम पर बड़े  

माँ की दुआओं से मेरा सम्मान जिन्दा रह गया 

 

होता नहीं था हम पे तो दीवानगी का कुछ असर

दिल में हमारे कैसे ये तूफ़ान जिन्दा रह गया 

 

नाजुक  हसीं गुल की हँसी उतरी थी दिल में जिस घड़ी

दिल में उसी पल से हसीं मेंहमान जिन्दा रह गया 

डॉ आशुतोष मिश्र 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 3:17pm

आदरणीय कपिश जी ...तकनीक का ज्ञान तो मुझे भी नहीं है ..चंद महीनात पहले जब से मैं इस मंच पर जुड़ा हूँ ..हर प्रयास पर बिद्वात्जानो से कुछ न कुछ सीखने को सतत ही मिल रहा है ..आपके शब्दों से मुझे नूतन उर्जा मिली है ..सदर धन्यवाद के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 1:16pm

आदरणीय आशुतोष सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी से सहमत हूँ तकाबुले रदीफ़ दोष है साथ ही साथ अंतिम शेर की तक्तीअ पुनः कर लें. इन दो अशआरों पर दिली बधाई स्वीकारें.

मेरे खुदा मुझ पर तेरा रहमो करम हरदम रहा

तूफ़ान में अदना सा ये इंसान जिन्दा रह गया .. वाह वाह

 

लगते रहे हर रोज ही इल्जाम तो हम पर बड़े  

माँ की दुआओं से मेरा सम्मान जिन्दा रह गया .. लाजवाब लाजवाब

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 12:44pm

मेरे खुदा मुझ पर तेरा रहमो करम हरदम रहा

तूफ़ान में अदना सा ये इंसान जिन्दा रह गया  /// ..... बहुत ही सुंदर 

माँ और भगवान की महिमा गाने और सुंदर गज़ल कहने की हार्दिक बधाई आशुतोष भाई ।

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 14, 2013 at 11:49am
आदरणीय मिश्रा जी बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गज़ल है आपकी । ग़ज़ल की तकनीकी बातों से अनभिज्ञ हूँ अतएव  केवल ग़ज़ल के भावों  को समझने तक ही सीमित रहता हूँ । आपको बहुत-बहुत बधाई । 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:11am

आदरणीया सरिता जी ..मेरी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे उर्जा मिली है यूं ही स्नेह बनाये रखें ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:02am

आदरणीया वंइ दना जी ..हौसला अफजाई के लिय हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:01am

आदरणीया कल्पना जी ,उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 10:00am

आदरणीय गिरिराज जी ..इस बार काफी ध्यान देने के बाद भी चूक हो ही गयी ..आपके मार्गदर्शन के अनुरूप संसोधन करने का प्रयास करूँगा .आपके स्नेहिल शब्द मुझे हमेशा उर्जा प्रदान करते हैं ..हार्दिक धन्यवाद ..दशहरे की शुभकामनाओं  और सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Sarita Bhatia on October 14, 2013 at 8:13am

आदरणीय आशुतोष जी लाजवाब गजल ,बधाई बधाई 

Comment by vandana on October 14, 2013 at 7:02am

लगते रहे हर रोज ही इल्जाम तो हम पर बड़े  

माँ की दुआओं से मेरा सम्मान जिन्दा रह गया 

वाह बहुत खूब आदरणीय आशुतोष जी 

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