फँसा रहता झमेले में,
मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,
हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,
भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,
गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर स्नेह बना रहे
हाहाहा बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री आशीष एवं स्नेह बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीय कपिश चन्द्र श्रीवास्तव जी
हार्दिक आभार आदरणीय राज बुन्देली जी स्नेह बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू जी स्नेह बना रहे
बहुत खूब भाई अरुण जी....
बंधी भैंस तबेले मैं
करें बाते अकेले मैं
वो बात डालर मैं कहाँ
जो बात है धेले मैं
हार्दिक बधाई स्वीकारें ......
अप्रतिम ..बढ़िया ...सशक्त प्रयास हुआ है ..इस ताजगी के लिए बहुत बधाई आ. अरुण जी !!
अजब इन्सान है देखो, फँसा रहता झमेले में,
आदरणीया दीदी की चुहल के बाद आपकी इतनी प्यारी हँसोड़ गज़ल !
लगता है हँसने मुस्कराने का मौसम आ गया !!
बधाई :-) आ0 अरुण जी!
आ0 अरुण जी बहुत ही खूबसूरत गजल हुई है बधाई ।
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