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कुण्डलियाँ [ माँ ]

मैया दस्तक दे रही ,खोलो मन के द्वार
मात कृपा से हो सदा ,हर सपना साकार //
हर सपना साकार ,जा कर द्वार पर कर लो
देती माँ आशीष , झोलियाँ खाली भर लो
सरिता करे पुकार ,तार माँ सबकी नैया
दे दर्शन चढ़ शेर ,सदा जगदम्बे मैया//

तेरे दर पर हूँ खड़ी,नतमस्तक कर जोड़
सर पर रखना हाथ माँ, दुख जाएँ दर छोड़
दुख जाएँ दर छोड़ ,हो साकार हर सपना
रहे न पारावार दो आशीष माँ अपना
भेंट करो स्वीकार, कब से लगाती फेरे
दर्शन देदो मात ,दर पर खड़ी मैं तेरे //

...............................................

          मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on October 8, 2013 at 6:26pm

शुक्रिया अरुण मार्गदर्शन करते रहें 

Comment by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 6:23pm

अ0 सरिता जी बढ़िया कुण्डलिया की रचना हुई है , बहुत बधाई आपको । 

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 5:56pm
सिंह पर एक कमल राजीत ताहि ऊपर भगवती , सबका कल्याण करो माते . बहुत सुंदर वन्दना . साधुवाद सरिता दीदी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 8, 2013 at 5:52pm

आदरणीया सरिता जी बहुत सुन्दर कुन्डलिया रची है आपने !!!!! बधाई !!!!!!

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 5:40pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह शानदार कुण्डलिया छन्द क्या बात है,,,,,,,,,,,बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 4:38pm

आदरणीया सरिता जी माँ को समर्पित सुन्दर भाव भरे कुण्डलिया छंद रचे हैं आपने, प्रयास बहुत ही अच्छा है और अधिक अच्छा हो सकता था. खैर इस प्रयास पर ढेरों बधाई स्वीकारें जय माता दी.

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