For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बागबां [लघुकथा]

साथ वाले सहगल साहिब यश जी से बोले घई जी के पिता हस्पताल में हैं यश जी ने कहा कल तो मेरे पास बैठे थे बेचारे परेशान थे ,पूछ रहे थे मुझे यहाँ आए हुए कितने दिन हो गए मैंने कहा मालूम नहीं उन्होंने फिर जिद्द करके पूछा फिर भी अंदाजा मुझे आए हुए कितना समय हो गया है ,मैंने कहा लगभग एक महीना हुआ होगा तो बोले फिर वो [छोटा बेटा] मुझे लेने क्यों आ रहा है? अभी दो महीने तो नहीं हुए हैं यह क्यों भेज रहे हैं मुझे इसी उधेड़बुन में शायद वो सुबह तक उठ ही नहीं पाए ,उनके एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था और उनको हस्पताल ले जाना पड़ा यह  सुनकर अमिताभ जी की बागबां से एक बार फिर आँखें नम थी क्योंकि वो दोहराई जा रही थी बार बार मेरे अपने देश के वृद्धों के साथ मेरे देश के युवा कर्णदारों द्वारा |

और याद आ गया कुछ दिन पहले लिखा एक दोहा 

         // सीखा उँगली को पकड़ चलना जिनके साथ

          वृद्धावस्था में अभी ,थामों उनका हाथ //

               ..........................................

                     मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:35pm

समाज की एक ज्वलंत समस्या पर बढ़िया लघु कथा ! बाकी आदरणीय बागी सर ने जो सुझाव दिया है उसके पालन से आप और हम सुधार कर और अच्छा प्रयास करेंगे ऐसी उम्मीद करता हूँ ! बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 2:51pm

आदरणीय सरिता जी लघुकथा विषय मार्मिक और सामयिक है !!! बहुत बधाई !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2013 at 10:36am

आदरणीया लघुकथा में कथ्य की प्रस्तुति इस तरह हो कि एक सामान्य पाठक को भी पहली बार पढ़ने में बात स्पष्ट हो, चूकि आप घटना से वाकिफ हैं इसलिए आप को सभी पात्र और कथ्य स्पष्ट है किन्तु पाठक तो कुछ नहीं जानता । कथ्य की प्रस्तुति में कभी कभी उन कथ्य का भी समावेश होता है जो बिलकुल काल्पनिक होता है । 

// इसका obo का लिंक भी प्रेषित करें//

लिंक नहीं समझ सका । 

 

Comment by Sarita Bhatia on October 6, 2013 at 9:57am

आदरणीय गणेश जी कृपया उचित मार्गदर्शन करें ताकि मैं आगे से वो गलती न दुहराकर इसे सुधार सकूँ मुझे इसका obo का लिंक भी प्रेषित करें तो महती कृपा होगी  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2013 at 9:33am

माफ़ी चाहूँगा आदरणीया, किन्तु कई बार पढ़ने के बाद भी, सहगल, यश, घई, अमिताभ और मैं के बीच उलझा रहा, यह जरुरी नहीं की हर पाठक "बागबां" फ़िल्म देखा ही हो, कुल मिलाकर यह लघुकथा शिल्प स्तर पर निराश करती है । 

Comment by Sarita Bhatia on October 6, 2013 at 9:33am

आदरणीय अभिनव जी ,कपिश जी ,आदरणीय रविकर sir ,प्रथम प्रयास था लघुकथा पर 

कल वास्तव में जब यह बात मेरे सामने घटी सारा वार्तालाप मेरे सामने हुआ तो रहा नहीं गया इसे लिखे बिना , भावी पीढ़ी ऐसे लोगों का क्या हश्र करेगी यह भूल जाते हैं शायद 

और सबसे बड़े दुःख की बात है माँ भी है उनकी पर दोनों को इक्कठे रहना नसीब में नहीं 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 6, 2013 at 9:31am

आज का युवा वर्ग, बुजुर्गों के साथ रहकर, अपनी खुशियों का बलिदान नही देना चाहता,शायद युवाओं की स्वतंत्रता भी भंग होती है, बहुत बढ़िया संदेशप्रद लघुकथा, बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी

Comment by रविकर on October 6, 2013 at 8:43am

मार्मिक-
सुन्दर सार्थक-
आभार आदरेया

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 8:35am

आदरणीया सरिता जी , आपकी लघुकथा काफी मर्मस्पर्शी लगी । भौतिकता और स्पर्धा के दौर पता नहीं आने वाले समय में घर के बुजुर्गों की क्या स्थिति होगी !!!!!!

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 7:13am

बढ़िया सन्देश परक रचना आदरणीया सरिता जी , हार्दिक बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service