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अपनी  निगाहों से मेरा हर अक्श मिटाने चला है वो

दिल से अपने अब मेरा हर नक्श मिटाने चला है वो

 

मेरी महफ़िल की रंगीनियत कम होने लगी शायद   

इसलिए साथ गैरों के महफिलें सजाने चला है वो

 

उस शख्स की शख्सियत भी क्या होगी यारो

मोहब्बत से भरा एक शख्स मिटाने चला है वो

 

जिसने खुद ही जलाई थी मोहब्बत की शमा कभी

उस शमा की आखिरी लौ भी अब बुझाने चला है वो

 

और जिनकी रग-रग मैं हैं धोखे और फरेब भरे

साथ उनके अब यारियों निभाने चला है वो

 

**************************************************

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 12:41am

बहुत सुंदर.............

उस शख्स की शख्सियत भी क्या होगी यारो

मोहब्बत से भरा एक शख्स मिटाने चला है वो

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 11:40pm

सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको आदरणीय । 

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2013 at 10:51pm

सुन्दर रचना है
हार्दिक स्वागत है

Comment by MAHIMA SHREE on October 4, 2013 at 10:14pm

बढ़िया है सचिन जी बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 9:49pm

आदरणीय सुन्दर रचना के लिये बधाई !!!

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:42pm

सुंदर रचना....बधाई हो आदरणीय सचिन भाई...

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 7:56pm

आह ! दिल से यही आह निकलती है आपने मेरी दुखती राग पर हाथ जैसा रख दिया ! बधाई स्वीकार करें !

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 7:19pm

बहुत सुन्दर ... हार्दिक बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

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