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कुण्डलिया (बीवी बनाम् शेरनी)

जंगल भागी शेरनी, ख़बर छपी अखबार।

फौरन फोन घुमाइए, नज़र पड़े जो यार।।

नज़र पड़े जो यार, पड़े हम भी चक्कर में,

कर डाला झट फोन, उसी पल चिड़ियाघर में।

यहाँ शेरनी एक, करे जो मुझसे दंगल,

'उसे' ढूँढने जाय, इसे तब छोड़ो जंगल।

----------------------------------- सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 12:52pm

 मजेदार कुण्डलियाँ! बहुत खूब! आपको हार्दिक बधाई!


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 11:35am

आदरणीय सुशील भाई , मजेदार कुंडलिया के लिये आपको बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2013 at 10:54am

एक शेरनी हाय ,करे जो मुझसे दंगल --------कर के देखिये (केवल परामर्श )


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2013 at 10:53am

हाहाहा ---सुबह सुबह बढ़िया पोस्ट दिखाई दी मजेदार  कुण्डलिया रची है शायद शेरनी से पंगा लिया होगा 

एक शेरनी यहाँ, करे जो मुझसे दंगल,------विषम चरण में गड़बड़ हो गई ---एक शेरनी यहाँ ---इसमें अंत में लघु गुरु आ गया है कृपया देख लें 

 

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