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प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!

देह-पिपासा जब जगी, गए देह में खोय!

 

मीरा का भी प्रेम था, गिरधर में मन-प्राण!

राधा भी थी खो गयी, सुन मुरली की तान!!

 

राम चले वनवास को, सीता भी थीं साथ!

बेर चखे थे राम ने, ले शबरी के हाथ!!

 

मन का मन से मेल है, मन का मन से संग!

नेह-डोर पर मन सधा, बिसरा सब तन-अंग!!

 

देह मोह का बंध है, यह माया का जाल!

देह-नशा जब सिर चढ़ा, तब आसा का हाल!!

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 9:22pm

आदरणीय माथुर साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by D P Mathur on October 1, 2013 at 9:21pm

आदरणीय सर नमस्कार, अनेकों रूपों का सही समावेश लिए हुए रचित दोहों के लिए आपको बधाई ।

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 9:20pm

आदरणीय वीनस जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 9:19pm

प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!

देह-पिपासा जब जगी, गए देह में खोय!

 

वाह आदरणीय आपने तल्ख़ हकीकत को कितने शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है

हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 7:27pm

आदरणीय शिज्जू जी आपका हार्दिक आभार! रचना को आपके अनुमोदन ने मेरे प्रयास को सार्थकता प्रदान की!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2013 at 7:06pm

वाह आदरणीय बृजेशजी खूबसूरत दोहावली रची है, आपकी रचना के भाव और इसका प्रवाह लाजवाब है, आपने अपनी बात बखूबी कही है, इस कामयाब रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 6:15pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

आपके कहे अनुसार मैं कुछ सुधर का प्रयास करता हूँ!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 6:09pm

आदरणीय बृजेश जी 

बहुत सुन्दर सुगठित दोहावली प्रस्तुत की है आपने... हार्दिक बधाई 

प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!.............बहुत सुन्दर पद 

मीरा का भी प्रेम था , गिरधर में मन प्राण 

राधा भी थी खो गयी , सुन मुरली की तान ........ अति उच्च भावों से समृद्ध ये दोहा कथ्य में कुछ अपूर्ण सा लग रहा है. ज़रा गौर कीजिये. क्या रचयिता सिर्फ एक बिम्ब खींचना चाहता है ??

सादर शुभकामनाएं 

 

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 5:11pm

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 5:11pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार!

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