For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन के रेगिस्तान में

जाने कितने बसंत
शीत,पतझड़, सावन
आये गये
तपती,भीगती,ठिठुरती
मुरझाती पर फिर भी
चलती रही अनवरत
हाँफती,दौड़ती,पसीजती
डोर अपनी साँसों की पकड़े
कोलाहल अंतर का समेटे
मूक, निःशब्द बस्
अपने काफिले के साथ
बढ़ती ही गई
जीवन के पथ पर !!

अपनी साँसें संयत करने को
रुकी इक पल को
पीछे मुड़ कर देखा जो
छोड़ गये थे सभी मुझको
मेरे पीछे था अब सुनसान
आगे वियावान
नीचे तपती रेत
ऊपर सुलगता आसमान
बीच में झुलसती मैं
अकेली जीवन के रेगिस्तान में ||

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on October 1, 2013 at 7:39am

आ० महिमा जी 
आप की निःशब्द करती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार  :)

Comment by Meena Pathak on October 1, 2013 at 7:38am

रचना सराहने के लिए आभार प्रिय राम जी 

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:21pm

अपनी साँसें संयत करने को
रुकी इक पल को
पीछे मुड़ कर देखा जो
छोड़ गये थे सभी मुझको
मेरे पीछे था अब सुनसान आगे वियावान
नीचे तपती रेत
ऊपर सुलगता आसमान ..... आदरणीया मीना जी .. आशा है ये सिर्फ मन के भाव हैं .. जीवन के नहीं .... क्योंकि अंत में आते आते .. रचना जैसे हमें भी निशब्द तपती रेत में अकेला खडें होने का एहसास कराती है .... बहुत -२ बधाई आदरणीया ...

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 8:16pm

अपनी साँसें संयत करने को 
रुकी इक पल को 
पीछे मुड़ कर देखा जो 
छोड़ गये थे सभी मुझको 
मेरे पीछे था अब सुनसान 
आगे वियावान 
नीचे तपती रेत 
ऊपर सुलगता आसमान 
बीच में झुलसती मैं
अकेली जीवन के रेगिस्तान में || 

वाह आदरणीया मीना दीदी अनुपम प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश जी  उत्साह वर्धन हेतु | सादर 

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 6:26pm

निशब्द कर गयी आपकी ये रचना! भावों की गहराई के साथ ही कसा हुआ शिल्प बरबस पाठक को बांधे रखता है.

इस सशक्त अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई! 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 2:34pm

हार्दिक आभार आ० विजय जी 

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 12:17pm
श्रेष्ठ अभिव्यक्ति . साधुवाद मीनाजी .
Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 11:39am

आदरणीय जितेन्द्र जी रचना सराहने हेतु हार्दिक आभार 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 11:38am

परम आदरणीय विजय निकोर जी सादर प्रणाम

रचना पर आप की उपस्थिति मेरे लिए आशीर्वाद है आप का, आशा करती हूँ कि आप का आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहेगा |
सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service