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सपने !!!!!!!

सुहाने से

सँजोये थे जो मन के

भीतर आवरणो की परतों मे

सँजोया और सींचा था

नव पल्लव देख

मन झूम उठा था

खुशी के अंकुर भी

फूट पड़े थे

उड़ान की आकांक्षा मे

पंखों को कुछ फड़फड़ा कर

ज्यों हुआ उड़ने को आतुर !!!!

आह !!

पंख कतर दिये किसने ?

धराशायी हुआ

स्वर भी बाधित हुआ

जख्म लगे

अभिलाषी मन

परित्यक्त सा

कुलबुला उठा

अश्रुओं ने साथ छोड़ा

धैर्य ने भी  हाथ छोड़ा

वो अकुलाहट !!!!

बरस उठी बरबस

कुछ शांत हुआ अब जाकर मन

सपने !!!!!

कुछ भी न थे शेष

न अभिलाषा थी

दुबारा फिर सँजोने की

श्रेयस्कर था त्यागना ही

पुनः जीवन धारा मे लौट कर

अविरल बहना

पथ पर आगे बढ़ना

सदा ही निरंतर ।.............................. 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

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Comment by रविकर on September 27, 2013 at 2:03pm

आकांक्षा के पर क़तर, तितर बितर कर स्वप्न |
दुःख अपने जो दें अगर, निश्चय बड़े कृतघ्न ||

शुभकामनायें आदरेया-

Comment by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 2:00pm
आदरणीय जितेंद्र जी , आ0 अखिलेश जी आपका हार्दिक आभार , स्नेह यूं ही बनाए रखें ।
Comment by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 1:57pm
आदरणीया शलिनी जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 27, 2013 at 1:55pm

सपने , सपनों का टूटना , निराशा और फिर एक नई आशा के साथ विश्वास....  बधाई आ. अन्नपूर्णा जी ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 27, 2013 at 1:27pm

अथाह गहरे भावों से पिरोई रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by shalini rastogi on September 27, 2013 at 1:06pm

श्रेयस्कर था त्यागना ही

पुनः जीवन धारा मे लौट कर

अविरल बहना

पथ पर आगे बढ़ना

सदा ही निरंतर ।.............................. अन्नपूर्णा जी, सही कहा आपने , यही श्रेयस्कर है कि ज़िन्दगी में निरंतर आगे बढ़ा जाए .. सुन्दर भाव!

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