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उडो तुम व्योम के वितान में

पसारो पंख निर्भय .

अश्रु धार  से

नहीं हटेगी चट्टान                                                                                                                    

जो है जीवन की राह में

मार्ग अवरुद्ध किये,  खुशियों की .

गगन की ऊंचाई से

सब कुछ छोटा लगता है .

और तुम बड़े हो जाते हो.

बिस्तर की नमकीन चादर को

धुप दिखा कर 

फिर टांग दो परदे की तरह ..

 

पुर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 1:34pm

सुन्दर रचना। बधाई आदरणीय नीरज जी।

Comment by vijayashree on September 25, 2013 at 1:26pm

बहुत सुंदर सन्देश देती इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें  नीरज कुमार जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 11:12pm

आदरणीय नीरज भाई बहुत ही सुन्दर प्रयास रचना पसंद आई बधाई स्वीकारें .

Comment by Neeraj Neer on September 24, 2013 at 7:28pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी हार्दिक आभार.. 

Comment by Neeraj Neer on September 24, 2013 at 7:28pm

आदरणीय अनुराग सैनी जी आभार 

Comment by Neeraj Neer on September 24, 2013 at 7:27pm

आदरणीय रविकर जी हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on September 24, 2013 at 7:26pm

आदरणीय अन्नपूर्णा वाजपेयी जी बहुत आभार आपका 

Comment by Neeraj Neer on September 24, 2013 at 7:25pm

आदरणीय वंदना तिवारी जी एवं संदीप कुमार पटेल जी ' बिस्तर की नमकीन चादर' से भाव यहाँ यह है कि आंसुओं से भींगी चादर , आंसुओं का स्वाद खारा होता है , फिर टांग दो परदे की तरह का आशय यह है खुद के और परेशानियों के बीच पर्दा ..  उम्मीद करता हूँ बातें अब अधिक स्पष्ट होगी.. आपका बहुत बहुत आभार .. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 5:34pm

आदरणीय नीरज भाई , बहुत अच्छी बात कही भाई , बधाई !!

गगन की ऊंचाई से

सब कुछ छोटा लगता है .

और तुम बड़े हो जाते हो.

बिस्तर की नमकीन चादर को

धुप दिखा कर 

फिर टांग दो परदे की तरह .. वाह वा !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:31pm

एक शुभ  सन्देश , बहुत शुभकामनाये 

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