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रामभरोसे ट्रेफिक पुलिस में हवलदार था, ड्यूटी करके वो घर में घुसते हुए अपनी पत्नी को चिल्ला कर बोला, “पार्वती, सुनो! गुड़िया को डॉक्टर को दिखाया? कुछ खांसी में फर्क पड़ा?”

उनकी पत्नी ने जवाब दिया, “सरकारी हस्पताल गयी थी, लेकिन वहां डॉक्टर साहब ने देख कर बोला कि पूरा चेकअप करना होगा, बच्ची को शाम को घर पर लाओ|”

रामभरोसे सर से लेकर पाँव तक गुस्से से तरबतर हो गया| वो पत्नी से बोला, “ये डॉक्टर बस रुपये कमाना ही जानते हैं, जनता की सेवा करना नहीं| पता है ना कि सरकारी हस्पताल से दवाई मिल जायेगी नहीं तो उसका पैसा रियम्बर्स हो जाएगा| अब वो अपने हिसाब से जांचे लिखेगा, दवाई लिखेगा| फीस भी लेगा और इन सबमें कमीशन भी खायेगा| डॉक्टर बनते समय जो कसम खायी थी वो तो भूल गए, बस कमीशन खाना याद रह गया| चलो मुझे ये तो बताओ कौन डॉक्टर था?”

पत्नी ने कहा, “डॉक्टर शर्मा था, बच्चों का डॉक्टर”

“अच्छा! वो डॉक्टर,”, रामभरोसे के चेहरे पे मुस्कान आ गयी, “ये तो रोज़ मेरे वाले चौराहे से ही निकलता है, उसका घर उसी रास्ते पर है, कल ही चालान काटता हूँ, गलत गाड़ी चलने के जुर्म में...”

उनकी आपस में बात चल ही रही थी कि घर की घंटी बजी, उनकी पत्नी ने दरवाज़ा खोल कर बताया कि, “रमेश भाईसाहब आये हैं|”

रमेश शहर की ऑटो यूनियन का अध्यक्ष था| रामभरोसे से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे, उनकी पत्नी को वो अपनी बहन मानता था| रामभरोसे की भी अपने विभाग में अच्छी पैठ थी, बड़े-बड़े अधिकारीयों से उसने अच्छे सम्बन्ध बना रखे थे| उसका मानना था कि अच्छा व्यवहार ही सभी जगह काम आता है, सत्य भी यही है|

रमेश के आते ही रामभरोसे की बिटिया भी भागती हुई आ गयी, वो जानती थी कि रमेश अंकल कोई  ना कोई अच्छी चोकलेट ज़रूर लाये होंगे, हमेशा की तरह वो लाये भी थे, उनसे चोकलेट लेकर वो खुश हो गयी|

रामभरोसे की पत्नी को नमस्ते करके रमेश ने सबकी खैरियत पूछी और रामभरोसे का गुणगान करने लगा, “बहनजी, आप कितनी भाग्यशाली हैं कि रामभरोसे जी जैसे देवता पुरुष आपके पति हैं, हम गरीबों के तो मानो मसीहा हैं| ये ना हों तो हमें जाने कितना नुकसान रोज़ का हो जाए| हम तो जो थोड़ा बहुत कमा पाते हैं, इन्हीं की बदौलत है| मेरे और कई सारे भाईयों के परिवार की रोटी-रोजी इन्हींकी बदौलत है|”

रामभरोसे की पत्नी खुशी से फूली नहीं समा पा रही थी| वो रामभरोसे को बोली, “क्यों जी| आप गरीबों की इतनी मदद करते हो, मुझे तो कभी नहीं बताया| तभी तो भैया,” वो रमेश से मुखातिब होकर बोली, “कहीं कुछ भी गलत हो रहा होता है, तो इनके तन-बदन में आग लग जाती है| भैया, बताओ ना क्या-क्या मदद करते हैं?”

रमेश भी खुशी- खुशी बोला, “बहनजी, ऑटो चलाने के लिए जितने पेट्रोल की ज़रूरत होती है, उतना अगर हम अपने ऑटो में डालें तो कमाना तो दूर रहा, हम लोग ऑटो की किश्त भी नहीं उतार पायें| इनकी परमिशन से हम कम पैट्रॉल से ऑटो चला लेते हैं|”

“अंकल, आप बिना पेट्रोल के ऑटो कैसे चलाते हो?”, रामभरोसे की बेटी आश्चर्यचकित होकर बोली|

रमेश बड़े प्यार से बोला, “गुड़िया बेटी, मैं ऑटो नहीं चलाता हूँ, हमारे संघ के बाकी सारे ड्राईवर चलाते हैं| होता यह है कि पैट्रॉल के साथ थोड़ा सा केरोसीन डाल देते हैं, जो कि राशन की दुकान से ले लेते हैं| राशन वाले अंकल भी बहुत अच्छे हैं| अब डैडी इन सबकी परमिशन दे देते हैं तो हम सब पर अहसान ही है ना|”

रामभरोसे की दस साल की बेटी ने जवाब दिया, “लेकिन अंकल, मेरे स्कूल के सर बोलते हैं कि केरोसीन से गाडी चलाने पर बहुत सारा धुंआ निकलता है और अपने शहर में जितनी अस्थमा के पेशेंट हैं, उनमें से अधिकतर केरोसीन वाले धुंए के कारण हैं?........ क्यों डैडी?,” वो रामभरोसे से बोली, “कहीं मुझे भी तो इतनी खांसी......”

रमेश बच्ची की बात काटकर अचानक से बोला, “अरे रामभरोसे जी, अ....... एक ज़रूरी बात के लिए आया था| पहले तो आप ये लीजिये, ये हम गरीब भाइयों की तरफ से ......”

फिर बहुत धीरे बोला, “इस महीने का”

रमेश ने एक लिफाफा रामभरोसे को दे दिया, रामभरोसे ने लिफाफा देखा उसके ऊपर लिखा था 25,000/- उसने चुपचाप वो लिफाफा अपने हाथ में ही रहने दिया|

रमेश फिर बोला, “भाईसाहब, अपना एक भाई कल रात को 8 बजे ऑटो चला रहा था, हम लोग देश के फायदे के लिए पेट्रोल/केरोसीन बचाने के लिए रात को ऑटो की लाईट नहीं जलाते हैं, अब देखो शहर की हालत कि एक एरिया में रोड लाईट भी नहीं है, वहां पर उस बिचारे से किसी व्यक्ति को टक्कर लग गयी और वो थोड़ा घायल हो गया, अखबार वालों को देखो तो उन्होंने ऐसा बड़ा चढ़ा कर बता दिया कि वो गंभीर रूप से घायल हो गया, भाई के ऑटो की फोटो भी दे दी| अब, आप थोड़ा सा संभाल लेना| बस यही अर्ज़ करने आया था|”

( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:36pm

आदरणीय विजयश्री जी , आपकी सराहना के लिए ह्रदय से धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:35pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी, आपकी सराहना के लिए ह्रदय से धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:35pm

आदरणीय अभिनव जी , आपने सच कहा खुद पर पड़े तो उपदेश देने लगते हैं, आपका ह्रदय से धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:34pm

आदरणीय अन्नपूर्णा जी, आपका ह्रदय से धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:34pm

आदरणीय गणेश जी "बागी", आपके आशीर्वाद के लिए ह्रदय से धन्यवाद !

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 19, 2013 at 11:33pm

आदरणीय गिरिराज जी भंडारी, बहुत बहुत धन्यवाद, आपने स्व. दुष्यंत कुमार जी की बात को इससे जोड़ कर, इसमें चार चाँद लगा दिए हैं| 

Comment by vijayashree on September 16, 2013 at 10:14pm

बहुत अच्छी कहानी ...दूसरों को उपदेश देना बहुत  सरल है 

बधाई स्वीकारें चंद्रेश जी 

Comment by बृजेश नीरज on September 16, 2013 at 6:51pm

बहुत अच्छी कहानी. आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 1:07pm

अच्छी प्रभावी कहानी , सच है पर उपदेश कुशल बहुतेरे ... पर जब अपने पे पड़ती है तो हम उपदेश देने लगते हैं । समय की नब्ज पकडती रचना के लिए बधाई !आपको

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:43pm

आदरणीय चंद्रेश जी मै यहाँ आ0 बागी जी की बात से सहमत हूँ। आपको बधाई .

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