For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन छाँव माँगे...

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।

सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,
भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।

भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manoshi Chatterjee on September 9, 2013 at 6:09am

धन्यवाद आदरणीय निकोर जी। आशा है आपको उन्मेष पसंद आयेगी। अपनी प्रतिक्रिया से ज़रूर अवगत करायें। 

सादर,
मानोशी

Comment by vijay nikore on September 7, 2013 at 5:55am

//श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे/

 ...  गीत का यह शीर्षक ही बहुत कुछ कह रहा है।

 

आपकी पुस्तक मंगवाई हुई है, प्रतीक्षा है।

प्रकाशक का कहना है कि शायद २० सितंबर तक यू.एस.ए. पहुँच जाएगी।

 

सुन्दर रससिक्त भावाभिव्यक्ति से भरपूर इस मनमोहक गीत के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

 

Comment by Manoshi Chatterjee on September 7, 2013 at 5:19am

आदरणीय रमेश जी, अरुण शर्मा जी, आदरणीया गीतिका जी, 

मेरी रचना को मान देने के लिये बहुत आभार। ऐसे ही स्नेह बनायें रखें। 

Comment by Manoshi Chatterjee on September 7, 2013 at 5:18am

डा. प्राची जी,

आप ने इस रचना को पसंद किया, यह मेरे लिये अत्यंत आनंद का विषय है। ’उन्मेष’ पढ़ कर बतायें कि आपको कैसा लगा। मुझे आपके विचार जानने की उत्सुकता रहेगी।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 6, 2013 at 7:48pm

प्रिय मानोशी जी 

आपकी पुस्तक उन्मेष की समीक्षाओं को जबसे पढ़ा है आपकी रचनाएँ पढ़ने की बहुत इच्छा थी, बस उन्मेष भी पहुँचती ही होगी... 

जितनी तारीफ़ मैंने आपकी अभिव्यक्तियों की, आपके लेखन की पड़ी थी आपकी रह रचना पढ़ कर लग रहा है समीक्षकों नें क्या खूब समीक्षा की थी... वाह!

प्रस्तुत नवगीत की एक एक  पंक्ति एक एक शब्द लालित्यपूर्ण भाव प्रवणता से सीधे हृदय में पैठ बना रहा है..

भोर का यह आस-पंछी 
सांझ होते खो न जाये,.....................अद्भुत भाव कथ्य सांद्रता , बहुत सुन्दर 
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये। 
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।

इस मन को तृप्त कर देने वाली अभिव्यक्ति के लिए हृदय तल से बहुत बहुत बधाई 

शुभकामनाएँ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 6, 2013 at 1:23pm

आदरणीया मानोशी जी वाह अप्रितम इस सुन्दर सुमधुर गीत रचा है आपने कि बस पढ़ता चला गया गहन भाव लिए ऐसी सुन्दर रचना हेतु हृदयतल से ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by वेदिका on September 6, 2013 at 12:15pm

सुखद सुमधुर रचना का पढ़ कर उन्मेष पढ़ने का मन हो आया!

शुभकामनायें !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 6, 2013 at 10:57am

आपके इस रचना में प्रत्येक शब्द एवं पद का चयन सागर्भित में सरस लगा । कोटिश बधाई

Comment by Manoshi Chatterjee on September 6, 2013 at 8:28am

आदरणीया महिमा जी, मीना जी, आदरणीय जीतेंद्र जी, राम शिरोमणि जी, केवल प्रसाद जी, राजेश कुमार जी एवं  बृजेश जी -  मेरी इस रचना को इस तरह सम्मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद  ।  

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2013 at 10:58pm

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।... वाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service