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ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही -- ग़ज़ल (राज )

दीवार तग़ाफुल  की  ये ढाओ  तो सही

इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही

 

आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें

इस ओर  जरा हाथ बढ़ाओ  तो सही 

 

हैरान परेशान खड़े हो इस कदर 

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही

 

मैं पार तेरे नाम से कर जाऊं तपिश 

सैलाब- ए- अंगार बहाओ तो सही

 

वीरान निगाहों  में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल

अशआर  गुरेज़त  के सुनाओ तो सही

 

तामीर करूँ ताज़महल तेरे लिए

इक नींव तकारुब की बिछाओ तो सही

 

मैं राज़  छुपा  दिल में ही रख लूँगी सदा

पर्दा –ए- हकीक़त को उठाओ तो सही

 

**********************************

तगाफ़ुल  =उपेक्षा 

रिफ़ाकत= दोस्ती.

गुरेज़त= विरक्ति

तकारुब= समीपता

तामीर =निर्माण

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 3:42pm

जीतेन्द्र गीत जी ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 12:35pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी , बेहतरीन गज़ल कही आपने , बहुत बधाई !!
दीवार तग़ाफुल की ये ढाओ तो सही
इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही --------- क्या बात है !!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2013 at 11:17am

 हैरान परेशान खड़े हो इस कदर 

ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही.......वाह! बेहतरीन शेर

वीरान निगाहों  में तेरी लिख दूँ ग़ज़ल

अशआर  गुरेज़त  के सुनाओ तो सही......क्या कहने, बहुत खूब

बेहद उम्दा गजल पर, दाद कुबूल कीजिये आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 10:40am

आदरणीय रविकर भाई जी ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक बन कर प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से आभार आपका |

Comment by रविकर on September 2, 2013 at 10:28am

आभार दीदी
उत्तम प्रस्तुति-

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