ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ...
चैन नहीं दिन में
रातें भी घबराती हैं ...
जीवन जीने की इच्छा
मन को ललचाती है ...
आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है ...
न गर्मी से तपता है तन
न ठण्ड डरा पाती है .....
ये पेट की आग भी
क्या क्या न कराती है ...

Comment
sahi kaha aapne...bilkul sahi...
bahut hi sundar rachna...
अनीता जी, आपकी रचनाओं मे अब पैनापन आने लगा है, बेहतरीन कविता है, मेहनतकश लोगो को समर्पित यह रचना अत्यंत खुबसूरत बन पड़ी है, इस पूरी कविता का निष्कर्ष इन दो पक्तियों मे ....
आगे बढ़ने की ख्वाइश
मेहनत खूब कराती है....क्या बात है ...
आगे भी हम सब को आपकी रचनाओं का और अन्य रचनाओं पर आपके बहुमूल्य टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online