धन की खटिया छोड़ दे, मोह नहीं रख पास
तन मन चंगा रख सके, मन में भरे मिठास |
समय मौत ग्राहक कभी, आ टपके अनजान
इन्तजार करना नहीं, इनकी फिदरत जान |
मात पिता स्व यौवन का,सदा करे सम्मान,
जाने पर फिर ना मिले,सहजे रखकर ध्यान |
छोडो चिंता अतीत की, चिंतन में हो आज,
समय व्यर्थ गँवाय नहीं, झट निपटावे काज |
उत्तम संग संगीत का, संत संग हो बात,
दोस्त बने सह्रदय के, दुनिया को दे मात |
विद्या श्रम अरु प्रभु में, सतत रहे संग्लन
उन्नति का ये मार्ग है, करे हमेशा यत्न |
इनको कम ना आंकिये, रोग शत्रु अरु कर्ज
वश में इनको रख सदा, काम क्रोध का मर्ज |
लोभ क्रोध अरु बदचलन, कर देते कमजोर,
आत्मबल कमजोर करे, मन में बैठे चोर |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद सर जी उत्तम दोहावली हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
दोहे पसंद करने के लिए आपका आभार श्री केतन परमार जी, एवं श्री विजय मिश्र जी
धन की खटिया छोड़ दे, मोह नहीं रख पास
तन मन चंगा रख सके, मन में भरे मिठास |
jo mithas aapke man me hai kaash yaha par sabke man me ho sir ji bahut hi acha likha hai aapne.
दोहे पसंद कर उत्साहवर्धन करन के लिए आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी, आदरणीय शुभ्रा शर्मा जी, एवं श्री बसंत नेमा जी, क्रपया यूँ ही स्नेह सहयोग बनाए रखे
आ0 लक्ष्मन जी बहुत ही सुन्दर दोहे है ... बधाई शुभकामानाये
आदरणीय लडिवाला जी , आपकी हर पंक्ति ला -जबाब है , को बड़ -छोट कहत अपराधू
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
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