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ग़ज़ल : हुई है सभ्यता गायब

बहर : हज़ज़ मुरब्बा सालिम

......... १२२२, १२२२ .........

अलग बेशक हुए मजहब,

सभी का एक लेकिन रब,

नज़र में एक से उसके,

भिखारी हो भले साहब,

जिसे जितनी जरुरत है,

दिया उसको उसे वो सब,

सभी को एक सी शिक्षा,

खुदा का बाँटता मकतब,

(मकतब : विद्यालय)

मुसीबत में पुकारे जो,

चले आयें बने नायब,

(नायब : सहायक)

अजब ये दौर आया की,

हुई है सभ्यता गायब...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2013 at 8:20am

"जिसे जितनी जरुरत है,

दिया उसको उसे वो सब..",........वाह ! बहुत खूब, आदरणीय अरुण जी, 

,

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:02am

बहुत खूब अरुण जी ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 26, 2013 at 12:03am

arun jee

नज़र में एक से उसके,

भिखारी हो भले साहब....aapkee is shandaar ghazal ke liye tahe dil badhayee ...haan ek jaankaaree chahta tha हज़ज़ मुरब्बा सालिम

......... १२२२, १२२२  is tarah kee matraon ke sequence hone par is behar ko hajaj murabba salim kaha jayega ya aur koi takneekee baat hai ya sirf 1212 1212 likhne se uddeshy kee poorti ho jaayegee ...ek baat aur jaana chahta hon jaroorat padne par stan bishesh par 12 kee jagah 21 ka pryog bhee kiya ja sakta hai kee nahee ..

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