For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित थे। कुत्ते को बिना कोई नुकसान पहुँचाये उसका मुँह सात बाणों से भरकर बंद कर दिया था एकलव्य ने। ये विद्या तो द्रोणाचार्य ने कभी किसी को नहीं सिखाई। एकलव्य ने उनकी मूर्ति को गुरु बनाकर स्वाध्याय से ही धनुर्विद्या के वो रहस्य भी जान लिये थे जिनको द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से छुपाकर रखते थे।

 

द्रोणाचार्य को रात भर नींद नहीं आई। उन्हें यही डर सताता रहा कि एकलव्य ने अगर स्वाध्याय से सीखी गई धनुर्विद्या का ज्ञान दूसरों को भी देना शुरू कर दिया तो द्रोणाचार्य के शिष्यों को, जिन्हें एक दिन द्रोणाचार्य की कीर्ति पताका सारे विश्व में फहरानी है, कौन पूछेगा? तिसपर यदि सबको इस बात का यकीन हो गया कि धनुर्विद्या स्वाध्याय से भी सीखी जा सकती है तो उनको और उनकी आने वाली पीढ़ियों को भिक्षा पर गुजारा करना पड़ेगा। सोच विचारकर दूसरे दिन द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य से उसके दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया।

 

परिणाम?

द्रोणाचार्य का सबसे प्यारा शिष्य और दुनिया का सबसे महान धनुर्धर अर्जुन समय के साथ खुद को बदल नहीं सका और एक दिन पंजाब के साधारण डाकुओं ने अपनी लाठियों से ही उसको बुरी तरह पराजित कर दिया। गुरु द्वारा दिये गये ज्ञान को ही सम्पूर्ण मानकर धनुर्विद्या सीखने वालों ने खुद कभी कुछ और जानने की कोशिश नहीं की। स्वाध्याय के अभाव में धनुर्विद्या में समय के साथ सुधार आने की जगह इसके रहस्य वक्त के साथ लुप्त होते चले गये और एक दिन धनुर्विद्या मर गई। 

----------------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 1458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 29, 2013 at 6:53pm

आदरणीय योगराज जी, मार्गदर्शन के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुजार हूँ। स्नेह बना रहे


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 29, 2013 at 5:17pm

आदरणीय भाई धर्मेन्द्र सिंह जी, बाकी बातें सुधि साथी कह चुके हैं, मैं तो सिर्फ एक बात बेहद शाइसत्गी से यह कहना चाहूँगा के आपकी यह रचना तो दरअसल लघु-कथा के दायरे में आती ही नहीं. सिर्फ आकार छोटा होने से ही कोई रचना लघु-कथा नहीं हो जाती. न तो इसका प्रारंभ ही लघुकथा जैसा है और न ही इसका अंत. लघुकथा का पहला पूरा पैरा ही गैर-ज़रूरी है. लघुकथा में इतना विस्तार/डिटेल नहीं दिया जाता. इसका अंत भी ऐसा होता है की बात केवल इशारे में कही जाती है और पाठक सन्न रह जाता है. आपने जिस तरह से अंतिम पैरे को "परिणाम" के तहत लिखा है उससे ऐसे प्रतीत हो रहा है जैसे स्कूल के ज़माने में "मोरल ऑफ़ दि स्टोरी" दिया जाता था

Comment by Shubhranshu Pandey on July 29, 2013 at 4:32pm

आ. धर्मेन्द्र जी, ये कारण आपके विचार से है, जो आपकी कथा, इतिहास और परिस्थिति के अनुसार सम्यक नहीं जान पड़ रहा है......

आगे वीनस जी की बात का मैं भी समर्थन करता हूँ....

सादर. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2013 at 7:37pm

वीनस जी आपसे सहमत हूँ। शुभ्रांशु जी, मुझे अर्जुन के हारने का कोई और कारण समझ में नहीं आता।

Comment by Shubhranshu Pandey on July 27, 2013 at 2:25pm

आ. धर्मेन्द्र जी, 

ऎसा लगा जैसे, किसी फ़िल्म की शुरुआत की कास्टिंग स्लाइड के बाद सीधा समाप्त का स्लाइड चला दिया हो...अर्जुन के सारे युद्धों को एक झटके में खत्म कर दिया गया. अर्जुन ने ढेर सारे युद्ध द्रोणाचार्य के बिना भी जीता है... स्वाध्याय के महत्व को बताने के लिये अलग बिंबो का प्रयोग कर सकते थे....अर्जुन का पंजाब में हारने को उसके स्वाध्याय से नहीं जोडा जा सकता है...

सादर.

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:07am

भाई,
मुझे लगता है कि पौराणिक पात्रों को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल तो किया गया है मगर इसे वर्तमान से जोड़ पाने में लघु कथा असफल है
इसको फिर से वर्कशॉप से गुज़ारना पड़ेगा ...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 26, 2013 at 8:54am

आजकल स्वाध्याय करने और प्रश्न करने वालों के साथ गुरू कैसा व्यवहार करता है वो भी कहने की कोशिश की गई है और स्वाध्याय न करने का परिणाम भी बताने का प्रयास किया गया है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 26, 2013 at 8:52am

हम्मम,

वीनस जी द्रोणाचार्य का चरित्र चित्रण नया है। द्रोणाचार्य जी के कुकर्म का ये परिणाम पहली बार लिखा गया है।

वैसे आपकी बात से मुझे लगता है कि इसका शीर्षक "एकलव्य" न रखकर "आधुनिक द्रोणाचार्य" रखना चाहिए था। क्योंकि मैंने इन पौराणिक पात्रों को ही प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है और ये लघुकथा दर’असल आजकल के गुरु शिष्य सम्बन्धों पर लिखी है जहाँ स्वाध्याय को कोई महत्व न देकर गुरु जो कहे वही सच मानने को अच्छा शिष्यत्व समझा जाता है। 

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:45am

हम्मम्...
कुछ तो नया होता भाई ...
कथ्य प्रतीक, उपमा, बिम्ब सब कुछ वही होगा तो कैसे चलेगा :((((((

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 25, 2013 at 2:08pm

केतन जी और किशन कुमार जी, फिर तो रामचरित मानस और साकेत को हिन्दी साहित्य से हटा देना पड़ेगा क्योंकि दोनों में ही रामकथा है जो हजारों वर्षों से सुनी सुनाई जा रही है। और कामायनी और वैशाली की नगरवधू और वयं रक्षामः और हजारों हजार पौराणिक कथायें जो विभिन्न लेखकों द्वारा समय समय पर लिखी गई हैं सब की सब केवल प्रेरक कथाएँ हो जाएँगी। :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service