For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वज्न - 2122 1122 22

 

महफिलें यूँ ही सजाये रखना

हौसला अपना बनाये रखना

 

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

इन चिरागों को जलाये रखना

 

रविशे-आम आज हरीफ़ाना है

संग हाथों में उठाये रखना 

 

अपनी यादों के वही दिलकश पल

इन निगाहों में छिपाये रखना

 

दरमियां फूलों के गुज़रो तुम तो

गुलचीं से खुद को बचाये रखना

 

(हरीफ़ाना= दुश्मनों सा. संग= पत्थर

गुलचीं= फूल तोड़ने वाला)

 

-मौलिक अप्रकाशित*

 

*संशोधित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 7, 2013 at 5:49pm

भा गयी ग़ज़ल श्री शिज्जू जी

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

इन चिरागों को जलाये रखना

बहुत बधाई आपको

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:03am

भाई जे आपने जो बहर ले ली है उसमें लय का अटकाव निश्चित है ...
इस ग़ज़ल को इस मात्रा के अनुसार कर लें तो ग़ज़ल गुरुसत हो जायेगी
२१२२ / ११२२ / २२
या
२१२२ / १२१२ / २२
लय में आपके कई मिसरे इन्हीं दो बहर पर आ रहे हैं मगर आपको एक को चुनना होगा ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 26, 2013 at 9:56am

वीनस जी आपका आभार जो आपने ग़ज़ल पसंद किया,

//कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं .//

शायद आपका इशारा दूसरे शे'र और मकते की तरफ है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 26, 2013 at 9:37am

अजय जी आपका आभार

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:52am

बहुत खूब
शानदार अभिव्यक्ति

कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं ...
पुनः विचार कर लीजिए

Comment by ajay yadav on July 21, 2013 at 12:23pm

आदरणीय सादर अभिवादन 

"महफिलें यूँ ही सजाये रखना

हौसला अपना बनाये रखना"......................सुंदर पंक्तियाँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:12pm

केतन जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:11pm

शुक्रिया प्रियंका जी जो आपने मेरी इस रचना को पसंद किया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 20, 2013 at 10:10pm

आपकी इस तारीफ के लिए गीतिका जी बहुत बहुत धन्यवाद, निगाहे-मेह्र कायम रखें.

Comment by Priyanka singh on July 19, 2013 at 9:33pm

bahut khub...badhaayi

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service