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स्नेह सुधा बरसाओ मेघा//नवगीत//

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा,

व्याकुल हुआ तरसता मन।

 

रिश्तों की जो बेलें सूखीं,

कर दो फिर से हरी भरी।

मन आँगन में पड़ी दरारें,

घन बरसो, हो जाय तरी।

सिंचित हो जीवन की धरती।

ले आओ ऐसा सावन।

 

दूर दिलों से बसी बस्तियाँ,

भाव शून्यता गहराई।

सरस सुमन निष्प्राण हो गए

नागफनी ऐसी छाई।  

बूँद-बूँद में हो बहार सी,

बरसाओ वो अपनापन।

 

उपजाऊ हो मन की माटी,

हर फुहार ऐसी लाओ।

सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की,

मेघराज जल्दी आओ।

पुनः पल्लवित हो जीवन में,

शुष्क हुआ जो अंतरमन।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

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Comment by राजेश 'मृदु' on July 9, 2013 at 6:19pm

अहा । आपकी रचना पढ़कर मन हमेशा पुलकित हो जाता है, सादर

Comment by कल्पना रामानी on July 9, 2013 at 6:08pm

गीतिका जी, प्रीति जी, आपकी टिप्पणी से मन हर्षित हुआ। आपका हार्दिक धन्यवाद...

सादर

Comment by mrs.Preeti G.sharma on July 9, 2013 at 2:33pm
'Adrniya kalpna ji, bahut sunder geet likha aapne, aapko badhai
Comment by वेदिका on July 9, 2013 at 1:16am

बहुत बहुत ही स्नेहमयी प्रार्थना बन पड़ी है कुदरत के प्रति..

आपको बहुत बहुत शुभकामनाये आदरणीया कल्पना जी!! 

कृपया ध्यान दे...

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