For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुराना जब जाता है ....

ये सच है पुराना जाता नहीं 

तो नया आता नहीं 

पर पुराना जब 

टूट कर जाता है 

तो उसे बहुत याद आता है

कल तक जिस टहनी पर 

वह इतना इतराता था 

इतना ईठलाता था 

आज बेबस पड़ा है 

सड़कों पर आ खड़ा है 

जरा सी हवा आई 

और उड़ा ले गई 

कल तक जो हवा अपने 

आँचल सहलाती थी 

आज वही हवा 

उसे दर-बदर कर रही है

तकदीर बदलते 

देर नहीं लगती 

कल तक हरा

आज धूप मे पड़ा 

खड़खड़ा रहा है 

टूटकर उसे बहुत याद आ रहा है .... 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 386

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 11, 2013 at 9:58pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी, रविकर जी, जितेंद्र जी , मुकर्जी जी एवं माथुर जी धन्यवाद आप सभी के स्नेह का..... बनाए रखें .... 

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 10:46pm

आदरणीय आमोद जी बहुत सुन्दर प्रयास है आपका। आपको हार्दिक बधाई! रचना को कुछ समय और देते तो अच्छा होता।
सादर!

Comment by रविकर on July 4, 2013 at 10:12pm

पूरा न्याय किया है रचना ने निहित भाव से-
बधाई आदरणीय-

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2013 at 8:16pm
"""येसच है पुराना जाता नहीं

तोनया आता नहीं

पर पुराना जब

टूटकर जाताहै

तोउसे बहुत याद आता है""".....आदरणीय...अमोद जी, समय की वास्तविकता व प्रक्रति के परिवर्तन नियम को देखते हुये, बड़े ही सरल शब्दों में आपने भावनाओं को स्पष्ट कर दिया.. !,जैसे कोई पत्ता अपनी टहनी पर बहारों के दौरान, हवा के झोंको में लहराता है! वही पतझड़ के मौसम में, जब टहनी उसका साथ छोड़ देती है तब सूख कर, दर बदर हो कर समाप्त हो जाता है! .......आदरणीय...सुंदर रचना प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें!
Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 6:18pm

प्रकृति परिवर्तन का दूसरा नाम है. सुंदर प्रयास.

Comment by D P Mathur on July 4, 2013 at 7:41am

सच है तकदीर बदलते देर नही लगती , सुन्दर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service