For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ

ग़ज़ल:-मैं ही रुसवा हुआ
मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में
नाम उसका नहीं फ़साने में |

उन चरागों को दुआएं दे दूं
खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |

चोंच खाली लिए लौटे पंछी
बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |

कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है
उम्र गुजरी इसे बनाने में |

तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते
तुम तो मशगूल थे नहाने में |

एक भरम है चमन की रंगों-बू
है मज़ा तितलियाँ उड़ाने में |

ताज में वे भी दफ़्न हैं 'अभिनव'
हाथ जिनके कटे बनाने में |

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 1, 2011 at 2:36pm

नुरैन अंसारी जी आभार और नए साल की मुबारकवाद !!!

Comment by Noorain Ansari on December 27, 2010 at 6:45pm
बहूत सुंदर ग़ज़ल..अभिनव जी..
 
तुम कि गंगा का दर्द क्या सुनते
तुम तो मशगूल थे नहाने में
Comment by Abhinav Arun on December 11, 2010 at 7:09pm

आभार रवि जी ! आपने ग़ज़ल पसंद की मन प्रसन्न और संतुष्ट हुआ |

Comment by Rash Bihari Ravi on December 10, 2010 at 2:18pm

khubsurat manmohak

Comment by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 2:16pm

धन्यवाद वीरेन्द्र जी | ऐसी ग़ज़लें पसंद करने वाले कम ही मिलते हैं और जो हैं वो मुझे बेहद पसंद हैं|

Comment by Veerendra Jain on December 9, 2010 at 12:04pm
चोंच खाली लिए लौटे पंछी
बच्चे भूखे रहे ठिकाने में |

कैसे कह दूं कि यह घर छोटा है
उम्र गुजरी इसे बनाने में |
bahut hi badhiya Arun ji...
Comment by Abhinav Arun on December 8, 2010 at 3:44pm
भास्कर जी,नवीन जी,गज़ल पसंद करने और उससे बड़ी बात कि कमेन्ट के लिए दिल से आभार |आप लोग लिखते हैं तो हौसला मिलता है |
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:03pm
उन चरागों को दुआएं दे दूं
खुद जला मैं जिन्हें जलाने में |...are wahh
Comment by Abhinav Arun on December 7, 2010 at 9:35am
आभार शेष जी ग़ज़ल पसंद की आपने |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service