For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"क्या लिखूं? "

ये सोच कर शुब्भु का दिमाग और दिल बहुत तेज  रहा था. वह कॉलेज की जानी मानी वक्ता थी. जब भी कोई फंक्शन होता या कोई भी विचार गोष्ठी, श्ब्भु को अपना नाम नही देना पड़ता था। उसके साथ स्वमेव ही उसका नामांकन करा देते। शुब्भु को घर बैठे गृहकार्य भी मिल जाता, की राजीव का ब्रेक अप हो गया है तो दिल टूटने की कविता लिखनी है। शैलजा, आशुतोष को प्रपोस करना चाहती है तो उसे अपिलिंग लाइन्स लिख के देनी है। और न जाने कितने आयोजन ख़त्म होते तो बिना शुब्भु को बुलाये ये असम्भव ही न होता।

शब्दों की धनी शुब्भु को अचानक एक बड़ी पत्रिका से नियमित एक स्थान मिला लिखने को। पत्रिका नामी थी, इसलिए शुब्भु का उत्साहित होना लाजिमी था।

खूब सोच सोच के शुब्भु हार रही थी, फूलों पर लिखे या प्रेम पर, रिश्तों पर लिखे या आतंकवाद पर, नैतिकता पर लिखे या भृष्टाचार पर?

शुब्भु को विषय का अभाव नही था, बल्कि उसके पास इतने सारेविषय थे की उनमे से एक चुनना मुश्किल हुए जा रहा था। 

जाने क्या सोच के वह खुश होती हुयी सो गयी। रात में अचानक बहुत आवाज सुनाई दी। उठ कर देखा तो मम्मी पापा और भाई सभी घर के बाहर और भी कॉलोनी के लोगों के साथ सडक पे खड़े थे।              

"क्या हुआ?" उसने माँ के पीछे जा कर धीरे से पूछा।  

"बसंत भैया की वाइफ सीता ने आज फाँसी लगा ली" माँ ने बताया । 

"क्या?" अवाक् हो के रह गयी शुब्भु!!

अक्सर ही जब शुब्भु कॉलेज से घर आती तो उसी समय वह सीता भाभी को माँ के पास से वापस जाती हुयी मिलती। और जब माँ से पूछती की सीता भाभी क्यों आई थी तो मालूम पड़ता की फिर से आज उसे बसंत भैया ने बुरी तरह से पीटा है जाने किन कारणों से तो केवल सीता भाभी शुब्भु की माँ को अपने घाव दिखाने और दवा के लिए कुछ पैसे उधार ले जाने आई थी, वह उधार जो सीता ने लेते समय कहा था की जल्दी ही चुका देगी। लेकिन  शुब्भु  की माँ जानती थी बेचारी सीता कभी नही लौटा पायेगी। और सचमुच सीता आज बिना अपना उधार लौटाए वापस दूसरी दुनिया में लौट गयी थी। बंसत को गिरफ्तार करने पुलिस पहुँच गयी थी। 

और शुब्भु को ख्याली विषयों से दूर एक विषय मिल चुका था अपने नियमित अंक के लिए। 

और वह था "स्त्री विमर्श"!

                                     शुभांगना सिद्धि 

मौलिक एवं अप्रकाशित        

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by शुभांगना सिद्धि on July 26, 2013 at 2:14pm

विषय सराहना के लिए आभार 

आदरणीय लक्ष्मण जी,  

आदरणीय बृजेश जी,, आदरणीय अशोक कुमार जी,

आदरनीय बृजेश जी, चाहती हूँ की आसपास की घटनाएँ, दीदियों के, भाभिओं के और सहेलियों  के साथ हो रहे अत्याचार जो देखती हूँ, कुछ कर नही पाती, मन मसोस कर रह जाती हूँ. इसलिए इस मंच के माध्यम से छुपे  हुए तथ्य  उजागर करने की एक कोशिश करना चाहती हूँ.

आभार, आपने आत्मबल दिया.       

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2013 at 8:00pm

सुन्दर लघुकथा आदरणीया 

Comment by बृजेश नीरज on July 3, 2013 at 9:27pm

स्त्री विमर्श! सच में अच्छा विषय है लेकिन वास्तविकता में यह लिखने भर की ही चीज रह गयी है। इस विषय को जितने गम्भीर प्रयास की जरूरत है वह करता कोई नहीं दिखता।

बहरहाल, आपका ताना बाना सुन्दर है। Punctuation का भी ध्यान रखें लिखते समय तो अच्छा रहेगा।

आपको इस प्रयास पर बहुत बहुत बधाई!

सादर!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2013 at 4:15pm

और शुब्भु को ख्याली विषयों से दूर एक विषय मिल चुका था अपने नियमित अंक के लिए। 

और वह था "स्त्री विमर्श"!---------पूरी रचना के सारांश कहे या यूँ कहे कहानी का सुन्दर समापन | हार्दिक बधाई 

Comment by शुभांगना सिद्धि on July 3, 2013 at 1:24pm

धन्यवाद आदरणीया प्राची जी! 

Comment by शुभांगना सिद्धि on July 3, 2013 at 1:24pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2013 at 8:52am

स्त्री विमर्श ... बहुत सही विषय चुना.

सादर शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2013 at 8:06am

सुन्दर प्रयास हुआ है शुभांगनाजी. अच्छा ताना-बान बुना है आपने.

बधाई

Comment by शुभांगना सिद्धि on July 3, 2013 at 12:47am

धन्यवाद आदरणीय रविकर जी 

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 8:05pm

उड़ी फर्श से अर्श तक, करिए नारि-विमर्श -
समालोचना सत्यता, नर-नारी उत्कर्ष ||
आभार
अच्छा विषय-

शुभकामनायें आदरेया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service