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आल्हा छंद - प्रथम प्रयास

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार

इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on June 25, 2013 at 11:15pm

आदरणीया प्राची दी अनेक अनेक धन्यवाद आपका अनुमोदन पाकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है, यह सब आप सभी के सहयोग के कारण संभव हो सका है. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 25, 2013 at 11:13pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार आपका आपको प्रयास सुन्दर लगा प्रयास सफल हुआ आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 25, 2013 at 11:12pm

आदरणीय अशोक सर जी हार्दिक आभार आपका आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2013 at 8:32pm

आल्हा छंद पर बहुत सुन्दर प्रयास 

सामायिक कथ्य और भाव बहुत संतुलित और प्रवाहमय लगे.

हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2013 at 10:51am

 प्रिय अरुन बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है प्रस्तुति और भाव दोनों के लिए बधाई एवं शुभकामनायें 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 25, 2013 at 8:22am

वाह! बहुत सुन्दर भाई अरुण शर्मा जी बहुत सुन्दर वीर छंद रचे हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. इस त्रासदी के लिए सभी प्राणी नहीं सिर्फ मानव को ही दोष दें तो बेहतर होगा. "आभासित" 

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 9:28pm

आदरणीया वेदिका जी भावुकता अपनी जगह और व्याकरण अपनी जगह, आदरणीया एक लेखक भावों के साथ साथ व्याकरण पर भी उतना ध्यान देता है इस हेतु आप अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं कृपया शर्मिंदा न हों. सादर

Comment by वेदिका on June 24, 2013 at 9:21pm

छंद बहुत अच्छा है आदरणीय अरुण जी!

मै तो बस छंद पढ़ते पढ़ते ही भावुक हो गयी, और शर्मिंदा हो उठी की मै भाव के बजाये व्याकरण को देख रही हूँ ।बस   

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 9:10pm

हार्दिक आभार आदरणीय केवल प्रसाद जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 9:10pm

आदरणीया गीतिका जी हार्दिक आभार आपका यह छंद स्वतः शीघ्र और बिना श्रम के बन गया और उसी समय अपने परिवार के साथ साझा कर लिया, भविष्य में ध्यान रखूँगा.

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