For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्तों को दुश्मन बनाया है किसने ..
शमशान में लाशों को पहुँचाया है किसने..

किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने...

हुयी शाम और ये रात है आयी..
किसने ये तारों की महफ़िल सजाई ...

सोचते-सोचते में सो गया हूँ ..
रात की कालिमा में मैं खो गया हूँ..

किसने इस कालिमा को लालिमा बनाया ..
किसने मुझको फिर से जगाया..

किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने...

किसने, हमको और तुमको बनाया ....
बनाकर मिटाया और फिर से बनाया ...

किसने नफरत और द्वेष बनाया ...
किसने प्रेम का सन्देश सिखाया ..

किसने चमन को है मरघट बनाया ..
न जाना है तुमने, न जाना है मैंने..

किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने... ??????

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 409

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 5:47pm

भाव प्रस्तुति के लिए बधाई,

शुभेच्छाएँ

Comment by aman kumar on June 26, 2013 at 5:22pm

किसने चमन को है मरघट बनाया .. 
न जाना है तुमने, न जाना है मैंने..

आप महान हो अमोद भाई , लगता है कभी पीलीभीत ही आना  होंगा आपसे मिलने ,

मज़ा आ गया !

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 5:11pm

मान्यवर  बृजेश नीरज जी बहुत बहुत आभार ... .आपका .. सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 5:11pm

मान्यवर    वीनस केसरी जी बहुत बहुत आभार ... .आपका .. सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 5:10pm

मान्यवर   Jitendra Pastariya जी बहुत बहुत आभार ... .आपका .. सादर

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 10:13pm

आपके प्रयास पर आपको बधाई! 

Comment by वीनस केसरी on June 11, 2013 at 3:37pm

sundar prastuti ....

hardik badhai

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2013 at 3:30am
आदरणीय..अमोद जी, खूबसूरत रचना प्रस्तुत की आपने .."किसने, हमको और तुमको बनाया...बनाकर मिटाया और फिर से बनाया..किसने नफरत और द्वेष बनाया...किसने प्रेम का सन्देश सिखाया...किसने चमन को मरघट बनाया ...न जाना तुमने न जाना है मैने...!आदरणीय...हार्दिक शुभकामनाऐं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service