For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकान्त/ अपना गांव

आज

बहुत दिनों बाद आया गांव

अपना गांव

जहां हुआ करते थे

महुआ, कटहल, आम

एक बाग भी।

खेलते थे गुल्ली डंडा

कभी कभी क्रिकेट भी।

अब वहां बाग नहीं है

उग आए हैं मकान।

 

एक नदी बहती थी

शांत, निर्मल।

ऊंचे कगारों पर

ढेर सारे जामुन के पेड़।

कगारों से फिसलते

हम पहुंच जाते किनारे

नदी में नहाते।

अब नदी सूख गयी

सिर्फ शेष रेत।

 

हथपुइया रोटी बनाती थीं

बड़ी अम्मा

नून, तेल चुपड़कर।

वह सोंधा स्वाद

अब भी है मुंह में।

लेकिन अब अम्मा नहीं।

 

अब कुछ भी नहीं

आम, जामुन, कटहल

अम्मा, बाग

कुछ नहीं।

सिर्फ हैं

ईंटों के मकान

सरपत और बबूल

ढेर सारे।

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by aman kumar on June 7, 2013 at 4:59pm
विकाश के नाम पर पलायन और प्रक्रति विनाश ही तो हुआ है .........गाव बाकी है ना  रिसोर्ट मे बने होटल नुमा .......
आप का आभार !
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 4:52pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
आपसे यह किस व्यक्ति ने कहा कि आपका गांव नही ंतो आप में भावुकता नहीं। आपकी रचना स्वयं आपकी भावुकता की कहानी कहती हैं।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 4:47pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आप हर बात में माफी क्यों मांगते हैं? आपने जो लिखा उसने मेरी रचना की व्याख्या कर दी। बहुत बहुत आभार आपका! मैं आपका शुक्रगुजार हूं कि आपने मेरी भावनाओं को समझा।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2013 at 4:44pm

हथपुइया रोटी बनाती थीं

बड़ी अम्मा

नून, तेल चुपड़कर।

वह सोंधा स्वाद

अब भी है मुंह में।

लेकिन अब अम्मा नहीं।

 कडुआ तेल और नमक लगी रोटी ..

वाह क्या स्वाद होता था 

बधाई सादर /सस्नेह 

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 4:32pm

बहुत ही सपाट सत्य की विवेचना की आपने आदरणीय बृजेश जी! 


ऐसा नही की हमारा गाँव नही या हम गाँव के नही तो मेरे अंदर वह भावुकता ही नही ...मैंने गाँव को बहुत की करीब से पिछले वर्ष देखा है ..जिसमे वही पीडाएं महसूस की मैंने जो पीड़ा आपने अपनी रचना में भर दी।  अब गाँव की ओर रास्ता करने से तो शहर ही भला लगने लगता है ...असुरक्षित है ..लेकिन अपने लोग उत्साह तो देते है यहाँ ...साथ तो नही छोड़ते ..वरना गाँव में तो कुछ भी करो प्रत्येक व्यक्ति निराश ही कर देता है ..! 
सादर 
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 4:19pm
"आदरणीय..ब्रजेश जी..बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की आपने, सच आजकल गांव मे वो बात कहां! वो नदियां जो हमेशा लवालव पानी से भरी रहती थी, आज तपती रेत पत्थर है! जहां बड़े विशाल पेड़, जिनकी छांव तले, दुपहरी व्यतीत करते थे, वहां दूर तक अपनी परछाई के अलावा, छांव का नामोनिशां नहीं! वो गांव के मासूम लोग जो मन के भोले होते थे, उनके अंदर स्वार्थ की भावनाओं ने दस्तक दे दी है! वो लकड़ियों के घर, जहां ईंटो के मकान बन गये हैं ! वो गांव के लोगों का आपसी रिश्ता, जो एक साथ मिलकर बड़ी से बड़ी, समस्या को सुलझा लेते थे, आज हैसियत से रिश्तों को निभाते है! वो गांव मे बहु -बेटियों का मान, आज हवस का शिकार हो रहा है....!समय ने "गांव " को गांव नहीं रहने, दिया! ...आदरणीय ब्रजेश जी, तहे दिल से शुभकामनाऐं स्वीकार करें...और मैं माफी भी चाहूँगा आपसे! भावुकता में कुछ ज्यादा ही कह गया!! क्योकि मेरा भी इक "गांव " है..।
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 3:31pm

आदरणीय श्याम जी आपका बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 3:30pm

आदरणीय आबिद जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 3:20pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 3:19pm
वाह..क्या चित्रण किया है आपने,मन को छूने वाली रचना के लिए बधाई स्वीकारेँ आदरणीय!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
22 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service