For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - "सितारे देखिये जब शब सियाह हो जाए"

बह्रे मुज़ारे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक़्बूज़ मख़्बून महज़ूफ़ो मक़्तुअ


1212/ 1122/ 1212/ 22
***********************
हमें अज़ीज़ मुजद्दिद की राह हो जाए;
नज़र में शैख़ की गर हो गुनाह हो जाए; ॥1॥

.
मेरे कलाम पे उनको यक़ीन था इतना,
ज़बाँ तराश के बोले सलाह हो जाए; ॥2॥

.
मेरे ख़ुदा तू सदाक़त नवाज़ यूँ मुझको,
जो मुद्दई हो मेरा ख़ैरख़ाह हो जाए; ॥3॥

.
कभी तो ज़ीस्त में अपनी भी पल वो आए जब,
तेरे करम का मेरा दिल गवाह हो जाए; ॥4॥

.
ज़िया ज़रूरी है आलम ये देखने को मगर,
सितारे देखिये जब शब सियाह हो जाए; ॥5॥

.
रवायतों से ही शाइस्तगी मिले लेकिन,
हुए हैं ग़र्बी तो कैसे निबाह हो जाए; ॥6॥

.
मना नहीं है रखो मेल-जोल सबसे मगर,
ज़रा हमारी तरफ़ भी निगाह हो जाए; ॥7॥

.
वह्ब चाहिए इसके सिवा मुझे कोई,
सग़ीरो ख़ास के दिल में पनाह हो जाए; ॥8॥

.
सुख़नसरा नहीं ग़ालिब या मीर सा वाहिद,
ख़ुदा का फ़ज़्ल ग़ज़ल गाह-गाह हो जाए; ॥9॥
***********************
वाहिद काशीवासी
{16052013}

====================================================================================

मुजद्दिद=इस्लाम धर्म का सुधारक; सदाक़त=सत्यनिष्ठता; ख़ैरख़ाह=शुभचिंतक; ज़िया=प्रकाश; शाइस्तगी=संस्कार; ग़र्बी=पाश्चात्य; वह्ब=पुरस्कार; सग़ीरो ख़ास= आम एवं विशिष्ट जन; सुख़नसरा=तरन्नुम में शे'र कहने वाला; गाह-गाह=यदा-कदा;

====================================================================================

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 6, 2013 at 8:42pm

जय हो वीनस जी! :-)

भाई बात तो आपकी बिलकुल सही है और इसीलिए मैं इससे इत्तेफ़ाक़ भी रखता हूँ! मशक्कत तो ख़ूब हुई और साथ ही साथ मश्क़ भी! दरअस्ल, इस बार काफ़िया ही ऐसा चुन लिया था कि बाद में लगने लगा कि क्या ये ग़ज़ल कभी वास्तविकता के धरातल पर उतर भी पाएगी या नहीं मगर पीछे न हटने की ज़िद ने इसे मुकम्मल कर दिया! और मैंने मक़ते में ज़ाहिर कर ही दिया कि इसके पीछे किसका फ़ज़्ल है! :-) सब कुछ उसी शे'र से शुरू हुआ था जिसके सानी को ग़ज़ल का शीर्षक चुना है और फिर सब होता ही चला गया वक़्त तो लगा मगर अंततः ऑल इज़ वेल दैट एंड्स वेल..! वक़्त, मशक्कत और रियाज़ का फल भी प्राप्त हुआ और आप लोगों की सराहना प्राप्त हुई! बस ऐसे ही मित्रता का भाव बनाये रखिये अभी तो बहुत लंबी दूरी तै करनी है! जय हो!! :-))))

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 6, 2013 at 8:34pm

आपका आभारी हूँ आदरणीय सौरभ जी! सादर,

Comment by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 1:01am

मेरी तौबा !!!
ऐसी कठिन ग़ज़ल पढ़ना ही अपने आप में एक ऐसा काम है जिसे करने में पसीने छूट जाएँ
आपने कई बार पसीने छुडाए
(खास कर तब जब जून का महीना हो)

भाई आपने कहने में क्या खूब मशक्कत की होगी... एड़ी का पसीना सर तक आया होगा ....

मगर एक बात है मश्क खूब हुई है राइज उर्दू अल्फाज़ से आगे बढ़ जाने पर सामान्य जानकारी वालों के लिए ग़ज़ल वो खीर हो जाती है जो खाना तो सभी चाहते हैं मगर गले में अटकने का डर बना रहता है ... हा हा हा

शब्दार्थ प्रस्तुत कर के आपने उपकृत किया और ग़ज़ल को समझने में आसानी रही

वो अशआर जियादा पसंद आए जिनमें बोल्ड नहीं करना पड़ा है :))))))))))))))))

मेरे ख़ुदा तू सदाक़त नवाज़ यूँ मुझको,
जो मुद्दई हो मेरा ख़ैरख़ाह हो जाए; ॥3॥

ये शेर इसका अपवाद रहा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 12:10am

ज़िया ज़रूरी है आलम ये देखने को मगर,
सितारे देखिये जब शब सियाह हो जाए;.. .     वाह !

बधाई कुबूल करें, भाई संदीप वाहिद जी..

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:43pm

आदरेया महिमा जी,

लंबे समय पश्चात् आपके दर्शन हुए और प्रतिक्रिया भी मिली! आभारी हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:42pm

दिली शुक्रिया अदा करता हूँ जनाब आबिद अली साहिब!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:42pm

बहुत-बहुत धन्यवाद राम शिरोमणि जी!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:41pm

आपका हार्दिक आभार आद. श्याम नारायण जी!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:41pm

भाई दीप जी!

आप जैसे निष्णात साहित्यकार से सराहना मिलती है तो हर्षित होना स्वाभाविक है! मेरे कलाम को मान दिया इस हेतु आपका आभारी हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:35pm

आदरणीय मिश्र जी,

आपसे सराहना मिली तो सुख़न कामयाब समझ आया! सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
45 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service